Thursday, October 11, 2018

मैं आऊंगा माँ-एक शहीद का पत्र

मेरी प्यारी माँ
सादर चरण स्पर्श!

आज तक मैं हर जंग तुम्हारे ही प्यार और आशीर्वाद से जीत सका हूँ। हर मौके पर तुमने मेरा हौसला बढ़ाया है और मुस्कुरा कर मुझे विदा किया। उन मुस्कुराहटों में तुम्हारा दर्द मैंने हरबार देखा लेकिन तुमने जाहिर होने नहीं दिया। कहीं मैं कमजोर न पड़ जाऊं।
माँ आज मैंने बहुत वीरता के साथ लड़ाई लड़ी। दर्जन भर दुश्मनों को ढेर किया है तुम्हारे लाल ने। अब थक गया हूँ माँ... धरती मैया की गोद में तुम्हारे ही असीम प्यार की अनुभूति हो रही है। फिर से एक लोरी सुनाओ न माँ ताकि गहरी नींद आ जाये मुझे। मैं आऊंगा माँ... तुमसे वादा किया था....तिरंगे में सजा...जवानों के कांधे पर सवार होकर...राष्ट्रगान बजाते बैंडबाजा के साथ...मैं आ रहा हूँ...माँ..तू रोयेगी तो नहीं न माँ.....अपनी गोद में सुलाकर हंसते हुए लोरी सुनाना माँ... आँसू नहीं बहाना माँ.... नहीं तो कैसे जा पाऊंगा एक नई जंग के लिए।
तुम मेरी शादी को लेकर जिद कर रही थी न माँ.. देखो ...कितनी सुंदर सजधज कर मेरी दुल्हन खड़ी है...साथ ले जाने को...हाँ ! माँ ,मौत है नाम उसका जो मेरी दुल्हन बनी है। बहुत ध्यान रखेगी माँ. । बाबा से कहना कि ओ भी नहीं रोएं ..मुझे पता है जब भी मैं घर से निकला वो चुपचाप सिसकते रहे। उनकी खामोशी में सिसकियां सुनी है माँ। कहना कि उनका लाल  अमर हो गया। बचपन की तरह फिर मुझे कांधे पर उठाकर लेकर जाएं। उनके कांधे पर चढ़कर मैं फिर बच्चा बन जाऊंगा माँ..
अच्छा माँ ...आ ...रहा हूँ  ..तेरी गोदी में सोने को माँ

तुम्हारा अजय

©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखण्ड

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