Monday, April 2, 2018

बेटी का जन्म

"प्लीज! अपनी दो छोटी छोटी बेटियों को लेकर इतनी रात कहाँ जाऊंगी?" रोहिणी अपने घरवालों के समक्ष गिड़गिड़ा रही थी।
"जहां जाना है जाकर मरो!" हमें इससे क्या? उसकी सास ने धक्का देकर घर से बाहर निकाल दिया।
रोहिणी बड़ी कातर दृष्टि से अपने पति की ओर देखा तो उसने मुंह फेर लिया।
अब उसके पास चारा ही क्या रह गया था अपनी दो बेटियों को लेकर रात में ही घर से बाहर आँगन में बैठ गयी
10 साल पहले बड़े धूमधाम से शादी हुई थी तो ससुराल में जोरदार स्वागत हुआ था। घर की इकलौती बहु जो थी। सास ससुर और पति बस इतना ही छोटा परिवार था। शादी के बाद कैसे दो साल गुजर गए पता ही नहीं चला।
"अरे बहु! दो साल बीत गए।खिलाने के लिए पोता चाहिए मुझे" सास कौशल्या ने कहा।
"आप भी न मांजी!"रोहिणी ने शरमाते हुए कहा।
कुछ ही दिनों में उसने सास को खुशखबरी सुना दी तो कौसल्या ने पूरे गाँव मे मिठाईया बांट दी। "अरे! मैं तो दादी बननेवाली हूँ।बहुत जल्द पोता होगा।"
"और पोती हो गयी तो!"रोहिणी ने दबी जुबान से कहा।
"ऐसा नहीं होगा,इस घर मे लड़का ही हुआ है!" कौसल्या ने लगभग डांटते हुए कहा।
कुछ ही दिनों में रोहिणी को प्रसव तो हुआ लेकिन घर मे खुशी नहीं आयी। सुंदर सी बेटी हुई लेकिन सास को पसंद नही आई।"ये क्या बहु? मैने तो पोता मांगा था।"
"अब इसमें हम क्या कर सकते हैं मांजी,ये तो भगवान की देन है" बात आई गयी हो गयी। रोहिणी अपनी बेटी के लालन पालन में जुट गई।
एकबार फिर जब रोहिणी गर्भ से रही तो सास ने फरमान जारी कर दिया"सुनो इसबार मुझे पोता ही चाहिए बेटी हुई तो तुम समझना" नही तो चलों जांच करवा देते हैं
"नहीं मांजी! ये अपराध है। भगवान जो देंगे वो हमें स्वीकार होगा।" रोहिणी ने अपना इरादा तो स्पस्ट कर दिया लेकिन बहुत टेंशन में रहने लगी।
प्रसव के दिन आ गया।रोहिणी बहुत चिंतित थी पता नही क्या होगा? हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया।इसबार फिर किस्मत ने रोहिणी का साथ नही दिया और फिर बेटी हो गयी। सास ससुर और पति का तो मुँह फूल गया।
"मैंने पहले ही कहा था जांच करा लो।लेकिन इसको क्या है?"अस्पताल में ही सास भुनभुनाने लगी।
अस्पताल से छुट्टी लेकर आई तो घर मे मानो कोहराम मच गया। ऑपरेशन का उतना दर्द नहीं हो रहा था जितना कि घरवालों के रवैये से हो रहा था। उसके बाद तो उसपर यातना का दौर शुरू हो गया। सास ससुर यहाँ तक कि पति भी उससे सीधे मुँह बात नही करने लगा। वह ससुराल में एक जिंदा लाश बनकर रह गई थी।आज तो उनलोगों से सारी हदें पार कर दी। बात इतनी बढ़ गयी कि रोहिणी को रात में घर से बाहर निकाल दिया।

       
वह रोये जा रही थी।पास में बैठी 3 साल की बेटी अपने नन्हे हाथों से उसके आँसू पोछ रही थी। "क्या हुआ मां?घाव दुख रहा है क्या?
अब रोहिणी उसे क्या समझती की दर्द कहाँ हो रहा है। जिसने सात जन्मों का साथ देने की कसम खायी थी उसने भी मुंह फेर लिया तो किसके पास जाय।
गोद मे दुधमुंही बच्ची को लेकर वह कहाँ जाय।!उसका दिमाग सुन्न पड़ता जा रहा था। वह उठकर अंधेरों में चलती रही। फिर उसके मन मे क्या आया की सीधे थाने पंहुच गयी।
"नहीं?अब नहीं बहुत हो गया ! आखिरी मेरा अपराध क्या है?"उसने अपना हक पाने की ठान ली और दोषी ससुराल वालों के खिलाफ प्रताड़ना का मुकदमा दर्ज कर दिया।

         ***पंकज प्रियम
3.4.2018