Sunday, May 6, 2018

साहित्य में लेखक की समस्या और समाधान


हिंदी साहित्य में लेखक की समस्या और समाधान

साहित्य लेखन में इन दिनों दो धाराएं चल रही है एक तो  व्यवसाय है जो सिर्फ और सिर्फ धनोपार्जन के लिए लिखते हैं। उन्हें साहित्य से उतना मतलब नहीं लोगों का मनोरंजन करना और पैसे कमाना एकमात्र उद्देश्य है। इसमें कुछ गलत भी नहीं है । दूसरी धारा साहित्यिक मंच की है जो शौकिया और साहित्य की सेवा के लिए लिखते हैं। साहित्य के सभी मानकों का ध्यान रखते हुए लिखते है। दूसरी धारा थोड़ी कठिन है आज यही मुश्किलों के दौर से गुजरती प्रतीत हो रही है।
समस्याएं:
साहित्य खासकर हिंदी के लेखकों  की अनगिनत समस्याएं हैं। ग्लैमराइज होने के बावजूद आज भी यह क्षेत्र करियर का सशक्त माध्यम नहीं बन सका है।आज भी आप अपना परिचय एक लेखक के रूप में दें तो इज्जत तो मिलेगी लेकिन उनके मन मे यह बात जरूर आती है कि क्या कमाता होगा? गिने चुने लब्धप्रतिष्ठ लेखकों को छोड़ दें तो अधिकांश लेखकों के समक्ष जीविकोपार्जन की समस्या बनी रहती है। लेखन का क्षेत्र आज भी शौकिया बना हुआ है। लेखक कहीं न कहीं दूसरे कार्य में जुटे होते हैं।इसके अलावे अपनी रचना के प्रकाशन और उसके प्रसार की समस्या बनी रहती है। नवोदित लेखकों के लिए तो यह राह काँटो भरा है। बड़े लेखकों का तो नाम ही बिक जाता है लेकिन नए लेखकों की राह आसान नहीं होती। बड़े प्रकाशक नए लेखकों को बहुत तरज़ीह नहीं देते।किसी तरह पैसे का जुगाड़ कर पुस्तक का प्रकाशन करा भी लिया तो उसके प्रसार और बिक्री की समस्या बनी रहती है। लेखकों के लिए बने बड़े मंच में नवोदित रचनाकारों को आसानी से जगह नहीं मिल पाती। इसमें भी भारी पैमाने पर भाई भतीजावाद और क्षेत्रीयता भारी पड़ती है।
हालांकि सोशल मीडिया और आभासी दुनिया में अनेकों मंच तैयार हो चुके हैं जहां अपनी
प्रतिभा को विश्व के पटल पर रख सकते हैं।सन्तोष तो मिल जाता है लेकिन इससे अर्थोपार्जन नहीं हो पाता है।
समाधान:
1.लेखकों के लिए विश्व,राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर पर सशक्त संगठन की आवश्यकता है जो साहित्य के विकास में सकारात्मक योगदान दे सके। 
2.इसके लिए सरकार को भी पहल करनी चाहिए। नवोदित लेखकों के उत्साहवर्धन हेतु उनकी रचनाओं के प्रकाशन,वितरण और उचित मूल्य की भी व्यवस्था होनी चाहिए।
3.रचनात्मकता को बढ़ावा देने हेतु ठोस योजना बने और लेखकों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने की कोशिश हो।
4.समय समय पर स्वस्थ प्रतियोगिता का भी आयोजन हो और सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले लेखकों को सम्मान भी मिले।
5. कॉपीराइट कानून को और अधिक कारगर बनाने की आवश्यकता है।
6.साहित्य लेखन को भी फ़िल्म इंडस्ट्री की तरह उद्योग का दर्जा देकर सर्वांगीण विकास की रूपरेखा बननी चाहिए।
©पंकज प्रियम
*साहित्योदय

Wednesday, May 2, 2018

गजल

ग़ज़ल 

*ग़ज़ल*
एक ही बहर और वज़न के अनुसार लिखे गए शेरों का समूह है। इसके पहले शेर को मतला कहते हैं। ग़ज़ल के अंतिम शेर को मक़्ता कहते हैं। मक़्ते में सामान्यतः शायर अपना नाम रखता है। आम तौर पर ग़ज़लों में शेरों की विषम संख्या होती है (जैसे तीन, पाँच, सात..)

। एक ग़ज़ल में 5 से लेकर 25 तक शेर हो सकते हैं। ये शेर एक दूसरे से स्वतंत्र होते हैं।

कभी-कभी एक से अधिक शेर मिलकर अर्थ देते हैं। ऐसे शेर कता बंद कहलाते हैं।

ग़ज़ल के शेर में तुकांत शब्दों को क़ाफ़िया कहा जाता है और शेरों में दोहराए जाने वाले शब्दों को रदीफ़ कहा जाता है।

शेर की पंक्ति को मिसरा कहा जाता है। मतले के दोनों मिसरों में काफ़िया आता है और बाद के शेरों की दूसरी पंक्ति में काफ़िया आता है।

रदीफ़ हमेशा काफ़िये के बाद आता है। रदीफ़ और काफ़िया एक ही शब्द के भाग भी हो सकते हैं और बिना रदीफ़ का शेर भी हो सकता है जो काफ़िये पर समाप्त होता हो।

ग़ज़ल के सबसे अच्छे शेर को शाहे बैत कहा जाता है। ग़ज़लों के ऐसे संग्रह को दीवान कहते हैं जिसमें हर हर्फ से कम से कम एक ग़ज़ल अवश्य हो।

एक उदाहरण

ग़ज़ल
बहर- 212 212 212 212
रदीफ़- अभी
क़ाफ़िया- आओ

*मतला*
पास आकर जरा गुनगुनाओ अभी
हाल क्या है दिलों का सुनाओ अभी।

खौफ़ पसरा अभी है सरे राह में,
कैद घर मे रहो, मुस्कुराओ अभी।

चंद घड़ियां बची है अभी पास में,
आस जीवन जरा सा जगाओ अभी।

साथ मिलकर चलो जंग ये जीत लें,
मौत के खौफ़ को मिल हराओ अभी।

*मक्ता*
कश्मकश ज़िन्दगी साँस धड़कन रुकी
हौसला तुम *प्रियम* का बढ़ाओ अभी।

©पंकज प्रियम

क्रम ५ - मात्रा गणना का सामान्य नियम

मात्रा गणना का सामान्य नियम 

बा-बह्र ग़ज़ल लिखने के लिए तक्तीअ (मात्रा गणना) ही एक मात्र अचूक उपाय है, यदि शेर की तक्तीअ (मात्रा गणना) करनी आ गई तो देर सबेर बह्र में लिखना भी आ जाएगा क्योकि जब किसी शायर को पता हो कि मेरा लिखा शेर बेबह्र है तभी उसे सही करने का प्रयास करेगा और तब तक करेगा जब तक वह शेर बाबह्र न हो जाए
मात्राओं को गिनने का सही नियम न पता होने के कारण ग़ज़लकार अक्सर बह्र निकालने में या तक्तीअ करने में दिक्कत महसूस करते हैं आईये तक्तीअ प्रणाली को समझते हैं
ग़ज़ल में सबसे छोटी इकाई 'मात्रा' होती है और हम भी तक्तीअ प्रणाली को समझने के लिए सबसे पहले मात्रा से परिचित होंगे -

मात्रा दो प्रकार की होती है 
१- ‘एक मात्रिक’ इसे हम एक अक्षरीय व एक हर्फी व लघु व लाम भी कहते हैं और १ से अथवा हिन्दी कवि | से भी दर्शाते हैं   
२= ‘दो मात्रिक’ इसे हम दो अक्षरीय व दो हरूफी व दीर्घ व गाफ भी कहते हैं और २ अथवाS अथवा हिन्दी कवि S से भी दर्शाते हैं

एक मात्रिक स्वर अथवा व्यंजन के उच्चारण में जितना वक्त और बल लगता है दो मात्रिक के उच्चारण में उसका दोगुना वक्त और बल लगता है 

ग़ज़ल में मात्रा गणना का एक स्पष्ट, सरल और सीधा नियम है कि इसमें शब्दों को जैसा बोला जाता है (शुद्ध उच्चारण)  मात्रा भी उस हिसाब से ही गिनाते हैं 
जैसे - हिन्दी में कमल = क/म/ल = १११ होता है मगर ग़ज़ल विधा में इस तरह मात्रा गणना नहीं करते बल्कि उच्चारण के अनुसार गणना करते हैं | उच्चारण करते समय हम "क" उच्चारण के बाद "मल" बोलते हैं इसलिए ग़ज़ल में ‘कमल’ = १२ होता है यहाँ पर ध्यान देने की बात यह है कि “कमल” का ‘“मल’” शाश्वत दीर्घ है अर्थात जरूरत के अनुसार गज़ल में ‘कमल’ शब्द की मात्रा को १११ नहीं माना जा सकता यह हमेशा १२ ही रहेगा

‘उधर’- उच्च्चरण के अनुसार उधर बोलते समय पहले "उ" बोलते हैं फिर "धर" बोलने से पहले पल भर रुकते हैं और फिर 'धर' कहते हैं इसलिए इसकी मात्रा गिनाते समय भी ऐसे ही गिनेंगे 
अर्थात – उ+धर = उ १ धर २ = १२ 

मात्रा गणना करते समय ध्यान रखे कि -

क्रमांक १ - सभी व्यंजन (बिना स्वर के) एक मात्रिक होते हैं 
जैसे – क, ख, ग, घ, च, छ, ज, झ, ट ... आदि १ मात्रिक हैं 

क्रमांक २ - अ, इ, उ स्वर व अनुस्वर चन्द्रबिंदी तथा इनके साथ प्रयुक्त व्यंजन एक मात्रिक होते हैं
जैसे = अ, इ, उ, कि, सि, पु, सु हँ  आदि एक मात्रिक हैं 
क्रमांक ३ - आ, ई, ऊ ए ऐ ओ औ अं स्वर तथा इनके साथ प्रयुक्त व्यंजन दो मात्रिक होते हैं 
जैसे = आ, सो, पा, जू, सी, ने, पै, सौ, सं आदि २ मात्रिक हैं 

क्रमांक ४. (१) - यदि किसी शब्द में दो 'एक मात्रिक' व्यंजन हैं तो उच्चारण अनुसार दोनों जुड कर शाश्वत दो मात्रिक अर्थात दीर्घ बन जाते हैं जैसे ह१+म१ = हम = २  ऐसे दो मात्रिक शाश्वत दीर्घ होते हैं जिनको जरूरत के अनुसार ११ अथवा १ नहीं किया जा सकता है 
जैसे – सम, दम, चल, घर, पल, कल आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं

४. (२) परन्तु जिस शब्द के उच्चारण में दोनो अक्षर अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ दोनों लघु हमेशा अलग अलग अर्थात ११ गिना जायेगा 
जैसे –  असमय = अ/स/मय =  अ१ स१ मय२ = ११२      
असमय का उच्चारण करते समय 'अ' उच्चारण के बाद रुकते हैं और 'स' अलग अलग बोलते हैं और 'मय' का उच्चारण एक साथ करते हैं इसलिए 'अ' और 'स' को दीर्घ नहीं किया जा सकता है और मय मिल कर दीर्घ हो जा रहे हैं इसलिए असमय का वज्न अ१ स१ मय२ = ११२  होगा इसे २२ नहीं किया जा सकता है क्योकि यदि इसे २२ किया गया तो उच्चारण अस्मय हो जायेगा और शब्द उच्चारण दोषपूर्ण हो जायेगा|    
  
क्रमांक ५ (१) – जब क्रमांक २ अनुसार किसी लघु मात्रिक के पहले या बाद में कोई शुद्ध व्यंजन(१ मात्रिक क्रमांक १ के अनुसार) हो तो उच्चारण अनुसार दोनों लघु मिल कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है 

उदाहरण – “तुम” शब्द में “'त'” '“उ'” के साथ जुड कर '“तु'” होता है(क्रमांक २ अनुसार), “तु” एक मात्रिक है और “तुम” शब्द में “म” भी एक मात्रिक है (क्रमांक १ के अनुसार)  और बोलते समय “तु+म” को एक साथ बोलते हैं तो ये दोनों जुड कर शाश्वत दीर्घ बन जाते हैं इसे ११ नहीं गिना जा सकता 
इसके और उदाहरण देखें = यदि, कपि, कुछ, रुक आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं 
  
५ (१) परन्तु जहाँ किसी शब्द के उच्चारण में दोनो हर्फ़ अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ अलग अलग ही अर्थात ११ गिना जायेगा 
जैसे –  सुमधुर = सु/ म /धुर = स+उ१ म१ धुर२ = ११२    

क्रमांक ६ (१) - यदि किसी शब्द में अगल बगल के दोनो व्यंजन किन्हीं स्वर के साथ जुड कर लघु ही रहते हैं (क्रमांक २ अनुसार) तो उच्चारण अनुसार दोनों जुड कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है इसे ११ नहीं गिना जा सकता 
जैसे = पुरु = प+उ / र+उ = पुरु = २,    
इसके और उदाहरण देखें = गिरि
६ (२) परन्तु जहाँ किसी शब्द के उच्चारण में दो हर्फ़ अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ अलग अलग ही गिना जायेगा 
जैसे –  सुविचार = सु/ वि / चा / र = स+उ१ व+इ१ चा२ र१ = ११२१ 

क्रमांक ७ (१) - ग़ज़ल के मात्रा गणना में अर्ध व्यंजन को १ मात्रा माना गया है तथा यदि शब्द में उच्चारण अनुसार पहले अथवा बाद के व्यंजन के साथ जुड जाता है और जिससे जुड़ता है वो व्यंजन यदि १ मात्रिक है तो वह २ मात्रिक हो जाता है और यदि दो मात्रिक है तो जुडने के बाद भी २ मात्रिक ही रहता है ऐसे २ मात्रिक को ११ नहीं गिना जा सकता है 
उदाहरण - 
सच्चा = स१+च्१ / च१+आ१  = सच् २ चा २ = २२ 
(अतः सच्चा को ११२ नहीं गिना जा सकता है)
आनन्द = आ / न+न् / द = आ२ नन्२ द१ = २२१   
कार्य = का+र् / य = कार् २  य १ = २१  (कार्य में का पहले से दो मात्रिक है तथा आधा र के जुडने पर भी दो मात्रिक ही रहता है)
तुम्हारा = तु/ म्हा/ रा = तु१ म्हा२ रा२ = १२२ 
तुम्हें = तु / म्हें = तु१ म्हें२ = १२  
उन्हें = उ / न्हें = उ१ न्हें२ = १२ 

७ (२) अपवाद स्वरूप अर्ध व्यंजन के इस नियम में अर्ध स व्यंजन के साथ एक अपवाद यह है कि यदि अर्ध स के पहले या बाद में कोई एक मात्रिक अक्षर होता है तब तो यह उच्चारण के अनुसार बगल के शब्द के साथ जुड जाता है परन्तु यदि अर्ध स के दोनों ओर पहले से दीर्घ मात्रिक अक्षर होते हैं तो कुछ शब्दों में अर्ध स को स्वतंत्र एक मात्रिक भी माना लिया जाता है 
जैसे = रस्ता = र+स् / ता २२ होता है मगर रास्ता = रा/स्/ता = २१२ होता है 
दोस्त = दो+स् /त= २१ होता है मगर दोस्ती = दो/स्/ती = २१२ होता है 
इस प्रकार और शब्द देखें  
बस्ती, सस्ती, मस्ती, बस्ता, सस्ता = २२ 
दोस्तों = २१२ 
मस्ताना = २२२ 
मुस्कान = २२१        
संस्कार= २१२१     

क्रमांक ८. (१) - संयुक्ताक्षर जैसे = क्ष, त्र, ज्ञ द्ध द्व आदि दो व्यंजन के योग से बने होने के कारण दीर्घ मात्रिक हैं परन्तु मात्र गणना में खुद लघु हो कर अपने पहले के लघु व्यंजन को दीर्घ कर देते है अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी स्वयं लघु हो जाते हैं    
उदाहरण = पत्र= २१, वक्र = २१, यक्ष = २१, कक्ष - २१, यज्ञ = २१, शुद्ध =२१ क्रुद्ध =२१ 
गोत्र = २१, मूत्र = २१, 

८. (२) यदि संयुक्ताक्षर से शब्द प्रारंभ हो तो संयुक्ताक्षर लघु हो जाते हैं 
उदाहरण = त्रिशूल = १२१, क्रमांक = १२१, क्षितिज = १२  

८. (३) संयुक्ताक्षर जब दीर्घ स्वर युक्त होते हैं तो अपने पहले के व्यंजन को दीर्घ करते हुए स्वयं भी दीर्घ रहते हैं अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी दीर्घ स्वर युक्त संयुक्ताक्षर दीर्घ मात्रिक गिने जाते हैं  
उदाहरण = 
प्रज्ञा = २२  राजाज्ञा = २२२,  

८ (४) उच्चारण अनुसार मात्रा गणना के कारण कुछ शब्द इस नियम के अपवाद भी है - 
उदाहरण = अनुक्रमांक = अनु/क्र/मां/क = २१२१ ('नु' अक्षर लघु होते हुए भी 'क्र' के योग से दीर्घ नहीं हुआ और उच्चारण अनुसार अ के साथ जुड कर दीर्घ हो गया और क्र लघु हो गया)       

क्रमांक ९ - विसर्ग युक्त व्यंजन दीर्ध मात्रिक होते हैं ऐसे व्यंजन को १ मात्रिक नहीं गिना जा सकता 
उदाहरण = दुःख = २१ होता है इसे दीर्घ (२) नहीं गिन सकते यदि हमें २ मात्रा में इसका प्रयोग करना है तो इसके तद्भव रूप में 'दुख' लिखना चाहिए इस प्रकार यह दीर्घ मात्रिक हो जायेगा 
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मात्रा गणना के लिए अन्य शब्द देखें - 
तिरंगा = ति + रं + गा =  ति १ रं २ गा २ = १२२     
उधर = उ/धर उ१ धर२ = १२ 
ऊपर = ऊ/पर = ऊ २ पर २ = २२      

इस तरह अन्य शब्द की मात्राओं पर ध्यान दें = 
मारा = मा / रा  = मा २ रा २ = २२
मरा  = म / रा  = म १ रा २ = १२
मर = मर २ = २
सत्य = सत् / य = सत् २ य २ = २१
असत्य = अ / सत् / य  = अ१ सत्२ य१ =१२१
झूठ = झू / ठ = झू २  ठ१ = २१
सच = २
आमंत्रण = आ / मन् / त्रण = आ२ मन्२ त्रण२ = २२२
राधा = २२ = रा / धा = रा२ धा२ = २२ 
श्याम = २१
आपको = २१२
ग़ज़ल = १२
मंजिल = २२
नंग = २१
दोस्त =  २१
दोस्ती = २१२
राष्ट्रीय = २१२१
तुरंत = १२१
तुम्हें = १२
तुम्हारा = १२२
जुर्म = २१
हुस्न = २१
जिक्र = २१
फ़िक्र = २१
मित्र  = २१
सूक्ति = २१ 
साहित्य = २२१ 
साहित्यिक = २२२ 
मुहावरा = १२१२