Monday, December 17, 2018

483.कहाँ सच होते हैं ख़्वाब

पढ़ डाली मैंने
वो सारी क़िताब
जिसमें भी लिखा था
सच_होते_हैं_ख़्वाब।
देखने मैं भी निकल पड़ा
रास्ते में एक बालक मिला
कचरों की ढेर पर खड़ा
कचरों को चुन रहा था
अपनी किस्मत को बुन रहा था।
उसने भी देखा था स्कूल का ख़्वाब
लेकिन खरीद नहीं सका इक क़िताब।
आगे बढ़ा तो देखा सड़क किनारे
दो बुजर्ग बैठे भूखे तड़पते हुए
घर से बेघर ठंड में ठिठुरते हुए
उन्होंने भी कभी देखा था
बच्चों में बुढ़ापे की लाठी का ख़्वाब
लेकिन उम्र की आखिर दहलीज़ पर
अपने ही बच्चों से मिल गया जवाब।
आगे बढ़ा ही था कि कदम रुक गए
पैरों के नीचे यूँ ही बिखरे पड़े थे
आलू,टमाटर और प्याज़
वहीं बैठा था किसान देकर सर पे हाथ
जी तोड़ मेहनत के बाद
फ़सल बेचने आया था
कर्ज़ चुकाकर बचे पैसों से
बेटी की शादी का देखा था ख़्वाब।
लेकिन इतने भी न मिले दाम
किराया भी होता वसूल
सब्जियों की तरह विखर गए उसके भी ख़्वाब।
गाँधी जी ने भी देखा था
सोने की चिड़ियाँ का ख़्वाब
लेकिन आज देखो हर तरफ
मन्दिर मस्जिद के नाम हो रहा फ़साद
अब मेरी भी हिम्मत देने लगी जवाब
कितना और किस-किस का लूं हिसाब
कहाँ पूरे होते हैं आम लोगों के ख़्वाब।
हां सच होते हैं न!
पाँच वर्ष में नेताओं के ख़्वाब
महीनों में ही अफसरों के ख़्वाब
टैक्स चुराते पूंजीपतियों के ख़्वाब
बैंकों को लूटकर विदेश भागते
मोदी-माल्या और निरवों के ख़्वाब।
हम तो भोले-भाले हैं ज़नाब
हमारे कहाँ सच होंगे ख़्वाब!

©पंकज प्रियम

Saturday, December 8, 2018

470.नादान परिंदा

शुक्रिया तेरा बहुत,
ओ भले इंसान
सबकी चाहत होती
पिंजर में हो कैद उड़ान।
कैसे तुमने समझा मुझको
कैसे तुमने दिया सम्मान
तुम हो इंसां या हो नादान

सबने चाहा मुझे कैद करना
मेरी बेवशी पर मौज करना
कुतर-कुतर के मेरे पर
दे दिया लोहे का पिंजर
खिलखिलाते सब सुनकर
पिंजरे से टकराते मेरे स्वर
शुक्रिया तेरा करूँ अभिनन्दन
सुना तुमने मेरा करुण क्रन्दन।
दिया तुमने मुझको आसमान
तू इंसां है या है फिर नादान।

लालिमा फिर निकली नभपर
हौसला मिला फिर मुझे अम्बर
पंख फैला फिर उड़ी अपने पर
मिली मुझको फिर अपनी उड़ान
शुक्रिया तेरा करूँ ओ भले इंसान
तू इंसा है या फिर है नादान।

©पंकज प्रियम

Thursday, October 25, 2018

दोहा

दोहा लेखन विधान:

१. दोहा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व है कथ्य। कथ्य से समझौता न करें। कथ्य या विषय को सर्वोत्तम रूप में प्रस्तुत करने के लिए विधा (गद्य-पद्य, छंद आदि) का चयन किया जाता है। कथ्य को 'लय' में प्रस्तुत किया जाने पर 'लय'के अनुसार छंद-निर्धारण होता है। छंद-लेखन हेतु विधान से सहायता मिलती है। रस तथा अलंकार लालित्यवर्धन हेतु है। उनका पालन किया जाना चाहिए किंतु कथ्य की कीमत पर नहीं। दोहाकार कथ्य, लय और विधान तीनों को साधने पर ही सफल होता है।
२. दोहा द्विपदिक छंद है। दोहा में दो पंक्तियाँ (पद) होती हैं। हर पद में दो चरण होते हैं।
३. दोहा मुक्तक छंद है। कथ्य (जो बात कहना चाहें वह) एक दोहे में पूर्ण हो जाना चाहिए। सामान्यत: प्रथम चरण में उद्भव, द्वितीय-तृतीय चरण में विस्तार तथा चतुर्थ चरण में उत्कर्ष या समाहार होता है।
४. विषम (पहला, तीसरा) चरण में १३-१३ तथा सम (दूसरा, चौथा) चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं।
५. तेरह मात्रिक पहले तथा तीसरे चरण के आरंभ में एक शब्द में जगण (लघु गुरु लघु) वर्जित होता है। पदारंभ में 'इसीलिए' वर्जित, 'इसी लिए' मान्य।
६. विषम चरणांत में 'सरन' तथा सम चरणांत में 'जात' से लय साधना सरल होता है है किंतु अन्य गण-संयोग वर्जित नहीं हैं।
७. विषम कला से आरंभ दोहे के विषम चरण मेंकल-बाँट ३ ३ २ ३ २ तथा सम कला से आरंभ दोहे के विषम चरण में में कल बाँट ४ ४ ३ २ तथा सम चरणों की कल-बाँट ४ ४.३ या ३३ ३ २ ३ होने पर लय सहजता से सध सकती है।
८. हिंदी दोहाकार हिंदी के व्याकरण तथा मात्रा गणना नियमों का पालन करें। दोहा में वर्णिक छंद की तरह लघु को गुरु या गुरु को लघु पढ़ने की छूट नहीं होती।
९. आधुनिक हिंदी / खड़ी बोली में खाय, मुस्काय, आत, भात, आब, जाब, डारि, मुस्कानि, हओ, भओ जैसे देशज / आंचलिक शब्द-रूपों का उपयोग न करें। बोलियों में दोहा रचना करते समय उस बोली का यथासंभव शुद्ध रूप व्यवहार में लाएँ।
१०. श्रेष्ठ दोहे में अर्थवत्ता, लाक्षणिकता, संक्षिप्तता, मार्मिकता (मर्मबेधकता), आलंकारिकता, स्पष्टता, पूर्णता, सरलता तथा सरसता होना चाहिए।
११. दोहे में संयोजक शब्दों और, तथा, एवं आदि का प्रयोग यथासंभव न करें। औ' वर्जित 'अरु' स्वीकार्य। 'न' सही, 'ना' गलत। 'इक' गलत।
१२. दोहे में यथासंभव अनावश्यक शब्द का प्रयोग न हो। शब्द-चयन ऐसा हो जिसके निकालने या बदलने पर दोहा अधूरा सा लगे।
१३. दोहा में विराम चिन्हों का प्रयोग यथास्थान अवश्य करें।
१४. दोहे में कारक (ने, को, से, के लिए, का, के, की, में, पर आदि) का प्रयोग कम से कम हो।
१५. दोहा सम तुकांती छंद है। सम चरण के अंत में सामान्यत: वार्णिक समान तुक आवश्यक है। संगीत की बंदिशों, श्लोकों आदि में मात्रिक समान्त्तता भी राखी जाती रही है।
१६. दोहा में लय का महत्वपूर्ण स्थान है। लय के बिना दोहा नहीं कहा जा सकता। लयभिन्नता स्वीकार्य है लयभंगता नहीं
*
मात्रा गणना नियम
१. किसी ध्वनि-खंड को बोलने में लगनेवाले समय के आधार पर मात्रा गिनी जाती है।
२. कम समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की एक तथा अधिक समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की दो मात्राएँ गिनी जाती हैंं। तीन मात्रा के शब्द ॐ, ग्वं आदि संस्कृत में हैं, हिंदी में नहीं।
३. अ, इ, उ, ऋ तथा इन मात्राओं से युक्त वर्ण की एक मात्रा गिनें। उदाहरण- अब = ११ = २, इस = ११ = २, उधर = १११ = ३, ऋषि = ११= २, उऋण १११ = ३ आदि।
४. शेष वर्णों की दो-दो मात्रा गिनें। जैसे- आम = २१ = ३, काकी = २२ = ४, फूले २२ = ४, कैकेई = २२२ = ६, कोकिला २१२ = ५, और २१ = ३आदि।
५. शब्द के आरंभ में आधा या संयुक्त अक्षर हो तो उसका कोई प्रभाव नहीं होगा। जैसे गृह = ११ = २, प्रिया = १२ =३ आदि।
६. शब्द के मध्य में आधा अक्षर हो तो उसे पहले के अक्षर के साथ गिनें। जैसे- क्षमा १+२, वक्ष २+१, विप्र २+१, उक्त २+१, प्रयुक्त = १२१ = ४ आदि।
७. रेफ को आधे अक्षर की तरह गिनें। बर्रैया २+२+२आदि।
८. अपवाद स्वरूप कुछ शब्दों के मध्य में आनेवाला आधा अक्षर बादवाले अक्षर के साथ गिना जाता है। जैसे- कन्हैया = क+न्है+या = १२२ = ५आदि।
९. अनुस्वर (आधे म या आधे न के उच्चारण वाले शब्द) के पहले लघु वर्ण हो तो गुरु हो जाता है, पहले गुरु होता तो कोई अंतर नहीं होता। यथा- अंश = अन्श = अं+श = २१ = ३. कुंभ = कुम्भ = २१ = ३, झंडा = झन्डा = झण्डा = २२ = ४आदि।
१०. अनुनासिक (चंद्र बिंदी) से मात्रा में कोई अंतर नहीं होता। धँस = ११ = २आदि। हँस = ११ =२, हंस = २१ = ३ आदि।
मात्रा गणना करते समय शब्द का उच्चारण करने से लघु-गुरु निर्धारण में सुविधा होती है।

ॐ दोहा विधान :
आदरणीय महागुरू श्री संजीव सलिल जी
विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर से साभार प्राप्त :

Sunday, October 21, 2018

पीरियड्स बनाम सबरीमाला

सबरीमाला मन्दिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर हंगामा बरपा हुआ है। स्थिति ये है कि आंदोलन की सूत्रधार रेहाना फ़ातिमा ने मंदिर में अपनी इस्तेमाल की हुई सेनिटरी पैड भगवान अयप्पा को चढ़ाने का प्रयास कर रही थी। मन्दिर में महिलाओं को प्रवेश दिलाने के आंदोलन की वजाय महिलाओं की स्वच्छता और स्वास्थ्य पर ध्यान देने की जरूरत है। इसके लिए सभी को आगे बढ़कर काम करना चाहिए। स्वच्छता तो जीवन का अंग है उसे अपनाने से कौन रोक सकता है। जो लोग मन्दिर में प्रवेश को लेकर आंदोलन कर रहे हैं उन्हें इन मुद्दों पर लड़ाई लड़नी चाहिए। महिलाओं को स्वच्छता के प्रति जागरूक करना चाहिए। एक मंदिर में प्रवेश मिल जाने से क्या स्वच्छता आ जायगी? आज भी किसी दुकान में सेनिटरी पैड ख़रीदने जाओ तो काली प्लास्टिक और अखबार में ऐसे छिपाकर देते हैं जैसे बम खरीद रहे हों।जागरूकता पर वहां बल देने की जरूरत है। आज भी गांव की औरतें कपड़े का इस्तेमाल करती है उन्हें जागरूक करने की जरूरत है। इस विषय पर कोई खुलकर बात करना नहीं चाहता। मैंने इस मुद्दे पर कई स्कूलों में प्रशिक्षण दिया है लेकिन पढ़ी लिखी शिक्षिकाएं भी खुलकर बात करने से हिचकती है। जबतक लोग जागरूक नहीं होंगे सरकार की सारी कोशिशें बेकार होंगी। लोग बेवजह मन्दिर मस्जिद के मसले पर बवाल करते रहेंगे। असली मुद्दों पर किसी का ध्यान ही नहीं। महिला तब सशक्त होंगी जब हम उन्हें अपने घरों में ही सशक्त करेंगे। उन्हें उनका अधिकार देंगे।
पंकज प्रियम

Saturday, October 20, 2018

सबरीमाला आंदोलन


दक्षिण में सबरीमाला मन्दिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर उठा आंदोलन थमने का नाम नहीं ले रहा है। लोग इसे महिलाओं के अस्तित्व पर सवाल उठा रहे हैं। आंदोलनकारी रजस्वला औरतों को मन्दिर में प्रवेश पर रोक का विरोध कर रहे हैं।
बात यहाँ अस्तित्व की नहीं है।स्वच्छता और सुचिता की है। नवरात्र में भी कन्यापूजन का विधान है कन्या यानी जो अबतक रजस्वला नहीं हुई हो। जिन लड़कियों की माहवारी शुरू हो जाती उन्हें कन्यापूजन में नहीं बिठाया जाता। जहां तक सबरीमाला का सवाल है तो ये उसकी आस्था का प्रश्न है। स्वामी अयप्पा अगर ब्रह्मचारी हैं तो महिलाओं के वहां प्रवेश की आवश्यकता ही नहीं। जैसे हनुमान जी को महिलाएं स्पर्श कर पूजा नहीं करती। शालिग्राम को भी महिलाएं नहीं छूती। अपने अपने धर्म और पन्थो की अपनी मर्यादा है। जैसे मुस्लिम महिलाओं का मस्जिद में प्रवेश वर्जित है वहां तो कोई विरोध नहीं होता। बात चाहे तीन तलाक की हो या फतवे जारी करने की सुप्रीम कोर्ट भी मुस्लिम कानूनी मामलों में हस्तक्षेप करने से मना कर देती है। कहती है कि यह उनके धर्म का मसला है तो फिर सबरीमाला को लेकर इतना विवाद क्यों?हां तो यहां तो कामख्या मन्दिर में योनि की पूजा होती है और रजस्वला के दिनों निकले रक्तनुमा स्राव को लोग कपड़ों में पोंछ कर बड़ी श्रद्धा के साथ अपने पास रखतें हैं। आषाढ़ माह में धरती के रजस्वला होने पर तीन दिन तक हल नहीं चलाया जाता ताकि धरती माता को तकलीफ न हो। बात यहां सुचिता और शारीरिक स्वच्छता व स्वास्थ्य की भी है।अमूमन हर औरत खुद माहवारी में पूजा पाठ छोड़ देती है क्योंकि उन्हें खुद स्वच्छ महसूस नहीं होता। दिल से कोई भी औरत कह दे कि माहवारी के दौरान पूजा पाठ करना चाहती हैं? पूजा पाठ के लिए तनमन दोनों का स्वच्छ होना आवश्यक होता है।कोई भी औरत उन दिनों खुद को स्वस्थ और स्वच्छ नही  महसूस करती। और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखें तो माहवारी के दिनों में महिलाओं को सबसे अधिक आराम की जरूरत होती है और उन्हें संक्रमण का खतरा अधिक होता है। यही नहीं उस दौरान सहवास भी प्रतिबंधित होता क्योंकि बीमारियों का खतरा होता हस। । इसलिए प्राचीन काल में उन्हें सभी घरेलू कार्यों से मुक्त रखा गया ताकि वो आराम कर सकें। आखिर इसी दौरान मन्दिर में प्रवेश का हठ क्यूँ?उसके बाद तो कोई रोक नहीं है।

पंकज प्रियम

Saturday, October 13, 2018

छंद

छंदों के नाम ( मात्रा सहित )-*

*1.छवि छंद-8 मात्रिक*
22121

*2.गंग छन्द -9 मात्रिक*
22122

*3.शशिवदना छन्द-10 मात्रिक*
4 4 2

*4.रेवा छन्द -11 मात्रिक*
222221

*5.तोमर छंद -12 मात्रिक*
चरणांत - गुरु लघु

*6.उल्लाला छंद-13 मात्रिक*
चरणांत -लघु गुरु का कोई बन्धन नहीं

*7.सखी छंद-14 मात्रिक*
चरणांत यगण या मगण

*8.चौपइ छंद-15 मात्रिक*
चरणांत गुरु लघु
*----------------------*
👆🏽
*अभ्यासियों के अवलोकनार्थ*

Thursday, October 11, 2018

मैं आऊंगा माँ-एक शहीद का पत्र

मेरी प्यारी माँ
सादर चरण स्पर्श!

आज तक मैं हर जंग तुम्हारे ही प्यार और आशीर्वाद से जीत सका हूँ। हर मौके पर तुमने मेरा हौसला बढ़ाया है और मुस्कुरा कर मुझे विदा किया। उन मुस्कुराहटों में तुम्हारा दर्द मैंने हरबार देखा लेकिन तुमने जाहिर होने नहीं दिया। कहीं मैं कमजोर न पड़ जाऊं।
माँ आज मैंने बहुत वीरता के साथ लड़ाई लड़ी। दर्जन भर दुश्मनों को ढेर किया है तुम्हारे लाल ने। अब थक गया हूँ माँ... धरती मैया की गोद में तुम्हारे ही असीम प्यार की अनुभूति हो रही है। फिर से एक लोरी सुनाओ न माँ ताकि गहरी नींद आ जाये मुझे। मैं आऊंगा माँ... तुमसे वादा किया था....तिरंगे में सजा...जवानों के कांधे पर सवार होकर...राष्ट्रगान बजाते बैंडबाजा के साथ...मैं आ रहा हूँ...माँ..तू रोयेगी तो नहीं न माँ.....अपनी गोद में सुलाकर हंसते हुए लोरी सुनाना माँ... आँसू नहीं बहाना माँ.... नहीं तो कैसे जा पाऊंगा एक नई जंग के लिए।
तुम मेरी शादी को लेकर जिद कर रही थी न माँ.. देखो ...कितनी सुंदर सजधज कर मेरी दुल्हन खड़ी है...साथ ले जाने को...हाँ ! माँ ,मौत है नाम उसका जो मेरी दुल्हन बनी है। बहुत ध्यान रखेगी माँ. । बाबा से कहना कि ओ भी नहीं रोएं ..मुझे पता है जब भी मैं घर से निकला वो चुपचाप सिसकते रहे। उनकी खामोशी में सिसकियां सुनी है माँ। कहना कि उनका लाल  अमर हो गया। बचपन की तरह फिर मुझे कांधे पर उठाकर लेकर जाएं। उनके कांधे पर चढ़कर मैं फिर बच्चा बन जाऊंगा माँ..
अच्छा माँ ...आ ...रहा हूँ  ..तेरी गोदी में सोने को माँ

तुम्हारा अजय

©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखण्ड

Sunday, September 30, 2018

छंद अभ्यास

1.शशिवदना
-दो चतुष्कल एक द्विकल
4  4  2
तुझको पाना है
दिल ने ठाना है
सबने जाना है
तुझको आना है।

2.गंग छंद
वर्णमात्रा--9
221 22
मन को न भाया
तन को न पाया
कुछ भी न बोलो
आँखे न खोलो।

3.रेवा छेह
वर्णमात्रा--11
222 221
सपना हो साकार।
सुखमय हो संसार।
लो जीवन में ठान।
सबमें बांटों प्यार।

4.छवि छंद
वर्णमात्रा --8
221 21
तन से फकीर
मन से अमीर
जग जीत जाय
सबको लुभाय।
🙏🙏🙏🙏
✍पंकज प्रियम

Friday, July 20, 2018

भूख और अंगूठा

भुख और अंगूठा

आज बुधिया के घर बड़े बड़े अफसरों की भीड़ लगी थी। नेताओं का जमावड़ा था। कोई एक बोरी चावल लेकर आया था तो कोई गेंहू भर टोकरी।कोई उसे दो हजार के नोट दे रहा था तो कोई बाबू चेक थमा रहा था। वह पथराई आंखों से एकटक चुपचाप सबको देखे जा रहा था। गोद में उसकी बेटी सुलमी की लाश पड़ी थी जो कल रात भात भात कहते मर गयी । कई दिनों से घर में अनाज का एक दाना भी नहीं था और पास में फूटी कौड़ी तक नहीं। बीमारी की वजह से वह काम पर भी नहीं जा पा रहा था। 

'काश!आज सुगना जिंदा होती तो कहीं से भी जुगाड़ कर लेती और बेटी को मरने नहीं देती। सच ही तो सब कहते हैं कि घर की लक्ष्मी के जाते ही घर घर नहीं श्मशान हो जाता है।" 

अरे!सरकार एक रुपये किलो अनाज दे रही है क्या तुम्हारे  पास कार्ड नहीं हैं? एक बाबू ने झिड़की लगा दी।

'कार्ड!

लाल कार्ड घर के कोने में पड़ा मानो बुधिया को चिढ़ा रहा था। 

 करीब एक सप्ताह से वह राशन दुकान का चक्कर लगाकर लगाकर थक चुका था। बीमार शरीर को मानो पैरों पर ढोकर ले जाता था। आसमान से आग बरसाते सूर्य देव को भी कहाँ तरस आती थी। लगता था रास्ते में ही टें बोल जाएगा। घर से करीब कोस भर दूर था डीलर बाबू का दुकान। जाते जाते आधा प्राण तो उड़ जाता था। राशन दुकान पंहुंच कर निढाल पड़ जाता था । ई तो डीलर की बूढ़ी मांय है जो पानी गुड़ पूछती थी। पुराने बुजुर्ग ही तो थोड़ा मान सत्कार को बचाकर रखे हैं। नहीं तो आज के लोग ! दुवार पर आए मेहमानों  की आवभगत तो दूर बैठने को भी नहीं पूछते। 

 'ए बाबू! आज देख न मशीनवा काम करतो की नैय।' घर मे एक छटाक भी अनाज नाय हो।"बुधिया बड़ी कातर भाव से डीलर की मिन्नत कर रही थी।

डीलर ने कई बार कोशिश की लेकिन बायोमीट्रिक मशीन बुधिया के अँगूठे को पढ़ नहीं पा रहा था। पढ़ता भी कैसे? मजदूरी करते करते बुधिया की उंगलियां घिसकर सपाट हो गयी थी, मानो भाग्य की लकीर ही मिट गई थी। 

'नहीं !नहीं काम कर रहा है मशीन। दूसरे दिन आना। जाओ अभी बहुत भीड़ है।"डीलर ने झिड़कते हुए कहा ।

"ए डीलर बाबू! जब मशीनवा पढतो तब,अभी एक किलो चावर दे दे। खाय खतिर कुछ तो दे। सुलमी बीमार है भूखे भात भात कर रहलो" बुधिया ने रोते हुए कहा।

"तो हम क्या करें। बिना मशीन के हम अनाज नहीं दे सकते। जाओ यहां से।"डीलर ने धकियाते हुए दुकान से बाहर कर दिया।

आज बिल्कुल टूट गया था बुधिया। थकहार कर वापस खाली हाथ घर की ओर चल पड़ा। कदम उठाते न उठ रहे थे। खुद को घसीटते हुए वह घर की ओर चल पड़ा। पिछले एक सप्ताह से वह डीलर के यहां चक्कर लगा रहा था लेकिन हरबार निराशा ही हाथ लगी। मशीन उसका अंगूठा नहीं पढ़ पा रही थी। वह डीलर बाबू की मिन्नतें करता कि एक किलो ही अनाज दे दो लेकिन वह झिड़क कर भगा देता। 

"बापू !भात ....भात... बहुत जोर से भूख लगल हो। नाय बचबो। घर घुसते ही सुलमी कि आवाज सीधे दिल को भेद रही थी। बुधिया सुलमी को गोद मे लेकर फूट फूट कर रो पड़ा। भूख के मारे तो उसकी भी जान निकल रही थी लेकिन  बेटी की भूख के आगे उसकी सारी भूख मर चुकी थी। सुलमी रात भर भात.. भात जपती रही। बुधिया की कब आंख लग गयी पता ही नहीं चला। 

सुबह आँख खुली तो आँखे फ़टी रह गयी। सुलमी निष्प्राण होकर जमीन पर पड़ी थी। बुधिया की अनुभवी आंखों ने तुरंत ताड़ लिया की सुलमी अब इस दुनिया में नहीं रही। वह बेटी से लिपटकर दहाड़ मारकर रो पड़ा।

        सुबह होते ही सुलमी के मौत की खबर आग की तरह फैल गयी। गांव के लोग तमाशा देखने पहुंच गए। आज सभी ढाढ़स देने लगे'अरे! होनी को कौन टार सकता है। बेचारी भूख से मर गयी। किसी ने अखबार वाले को खबर कर दिया वे कैमरा लेकर पहुंच गए। देखते देखते मामले ने तूल पकड़ लिया।  बड़े बड़े अधिकारी पहुंचने लगे। उसके घर अनाज और पैसों की बरसात होने लगी। डॉक्टर साहब ने जांच पड़ताल कर कह दिया कि सुलमी की मौत भूख से नहीं बीमारी के कारण हुई हैं। बड़े बाबुओं ने कागज पर ठेपा भी लगवा लिया। जो अंगूठा मशीन नहीं पढ़ पा रही थी वो बाबुओं के काम आ गयी। बुधिया कभी अनाजों के ढेर को देखता कभी सुलमी की लाश को और कभी आने अंगूठे को।

©पंकज भूषण पाठक"प्रियम"

गिरिडीह, झारखंड

Tuesday, June 19, 2018

अंगूठा

लघुकथा
अंगूठा

आज बुधिया के घर बड़े बड़े अफसरों की भीड़ लगी थी। नेताओं का जमावड़ा था। कोई एक बोरी चावल लेकर आया था तो कोई गेंहू भर टोकरी।कोई उसे दो हजार के नोट दे रहा था। वह एकटक चुपचाप सबको देखे जा रही थी। उसकी बेटी सुलमी कल भात भात कहते मर गयी। घर में एक दाना अनाज नहीं था। एक सप्ताह से राशन दुकान का चक्कर लगाकर थक चुका था। मशीन उसका अंगूठा नहीं पढ़ पा रही थी। वह डीलर बाबू की मिन्नतें करता कि एक किलो ही अनाज दे दो लेकिन वह झिड़क कर भगा देता।
सुबह जैसे ही सुलमी के मौत की खबर लगी उसके घर अनाज और पैसों की बरसात हो रही है। डॉक्टर साहब ने जांच पड़ताल कर कह दिया कि सुलमी की मौत भूख से नहीं बीमारी के कारण हुई हैं। बड़े बाबुओं ने कागज पर ठेपा भी लगवा लिया। जो अंगूठा मशीन नहीं पढ़ पा रही थी वो बाबुओं के काम आ गयी। बुधिया कभी अनाजों के ढेर को देखता कभी सुलमी की लाश को और कभी आने अंगूठे को।
©पंकज प्रियम
19.6.2018

Sunday, May 6, 2018

साहित्य में लेखक की समस्या और समाधान


हिंदी साहित्य में लेखक की समस्या और समाधान

साहित्य लेखन में इन दिनों दो धाराएं चल रही है एक तो  व्यवसाय है जो सिर्फ और सिर्फ धनोपार्जन के लिए लिखते हैं। उन्हें साहित्य से उतना मतलब नहीं लोगों का मनोरंजन करना और पैसे कमाना एकमात्र उद्देश्य है। इसमें कुछ गलत भी नहीं है । दूसरी धारा साहित्यिक मंच की है जो शौकिया और साहित्य की सेवा के लिए लिखते हैं। साहित्य के सभी मानकों का ध्यान रखते हुए लिखते है। दूसरी धारा थोड़ी कठिन है आज यही मुश्किलों के दौर से गुजरती प्रतीत हो रही है।
समस्याएं:
साहित्य खासकर हिंदी के लेखकों  की अनगिनत समस्याएं हैं। ग्लैमराइज होने के बावजूद आज भी यह क्षेत्र करियर का सशक्त माध्यम नहीं बन सका है।आज भी आप अपना परिचय एक लेखक के रूप में दें तो इज्जत तो मिलेगी लेकिन उनके मन मे यह बात जरूर आती है कि क्या कमाता होगा? गिने चुने लब्धप्रतिष्ठ लेखकों को छोड़ दें तो अधिकांश लेखकों के समक्ष जीविकोपार्जन की समस्या बनी रहती है। लेखन का क्षेत्र आज भी शौकिया बना हुआ है। लेखक कहीं न कहीं दूसरे कार्य में जुटे होते हैं।इसके अलावे अपनी रचना के प्रकाशन और उसके प्रसार की समस्या बनी रहती है। नवोदित लेखकों के लिए तो यह राह काँटो भरा है। बड़े लेखकों का तो नाम ही बिक जाता है लेकिन नए लेखकों की राह आसान नहीं होती। बड़े प्रकाशक नए लेखकों को बहुत तरज़ीह नहीं देते।किसी तरह पैसे का जुगाड़ कर पुस्तक का प्रकाशन करा भी लिया तो उसके प्रसार और बिक्री की समस्या बनी रहती है। लेखकों के लिए बने बड़े मंच में नवोदित रचनाकारों को आसानी से जगह नहीं मिल पाती। इसमें भी भारी पैमाने पर भाई भतीजावाद और क्षेत्रीयता भारी पड़ती है।
हालांकि सोशल मीडिया और आभासी दुनिया में अनेकों मंच तैयार हो चुके हैं जहां अपनी
प्रतिभा को विश्व के पटल पर रख सकते हैं।सन्तोष तो मिल जाता है लेकिन इससे अर्थोपार्जन नहीं हो पाता है।
समाधान:
1.लेखकों के लिए विश्व,राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर पर सशक्त संगठन की आवश्यकता है जो साहित्य के विकास में सकारात्मक योगदान दे सके। 
2.इसके लिए सरकार को भी पहल करनी चाहिए। नवोदित लेखकों के उत्साहवर्धन हेतु उनकी रचनाओं के प्रकाशन,वितरण और उचित मूल्य की भी व्यवस्था होनी चाहिए।
3.रचनात्मकता को बढ़ावा देने हेतु ठोस योजना बने और लेखकों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने की कोशिश हो।
4.समय समय पर स्वस्थ प्रतियोगिता का भी आयोजन हो और सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले लेखकों को सम्मान भी मिले।
5. कॉपीराइट कानून को और अधिक कारगर बनाने की आवश्यकता है।
6.साहित्य लेखन को भी फ़िल्म इंडस्ट्री की तरह उद्योग का दर्जा देकर सर्वांगीण विकास की रूपरेखा बननी चाहिए।
©पंकज प्रियम
*साहित्योदय

Wednesday, May 2, 2018

गजल

ग़ज़ल 

*ग़ज़ल*
एक ही बहर और वज़न के अनुसार लिखे गए शेरों का समूह है। इसके पहले शेर को मतला कहते हैं। ग़ज़ल के अंतिम शेर को मक़्ता कहते हैं। मक़्ते में सामान्यतः शायर अपना नाम रखता है। आम तौर पर ग़ज़लों में शेरों की विषम संख्या होती है (जैसे तीन, पाँच, सात..)

। एक ग़ज़ल में 5 से लेकर 25 तक शेर हो सकते हैं। ये शेर एक दूसरे से स्वतंत्र होते हैं।

कभी-कभी एक से अधिक शेर मिलकर अर्थ देते हैं। ऐसे शेर कता बंद कहलाते हैं।

ग़ज़ल के शेर में तुकांत शब्दों को क़ाफ़िया कहा जाता है और शेरों में दोहराए जाने वाले शब्दों को रदीफ़ कहा जाता है।

शेर की पंक्ति को मिसरा कहा जाता है। मतले के दोनों मिसरों में काफ़िया आता है और बाद के शेरों की दूसरी पंक्ति में काफ़िया आता है।

रदीफ़ हमेशा काफ़िये के बाद आता है। रदीफ़ और काफ़िया एक ही शब्द के भाग भी हो सकते हैं और बिना रदीफ़ का शेर भी हो सकता है जो काफ़िये पर समाप्त होता हो।

ग़ज़ल के सबसे अच्छे शेर को शाहे बैत कहा जाता है। ग़ज़लों के ऐसे संग्रह को दीवान कहते हैं जिसमें हर हर्फ से कम से कम एक ग़ज़ल अवश्य हो।

एक उदाहरण

ग़ज़ल
बहर- 212 212 212 212
रदीफ़- अभी
क़ाफ़िया- आओ

*मतला*
पास आकर जरा गुनगुनाओ अभी
हाल क्या है दिलों का सुनाओ अभी।

खौफ़ पसरा अभी है सरे राह में,
कैद घर मे रहो, मुस्कुराओ अभी।

चंद घड़ियां बची है अभी पास में,
आस जीवन जरा सा जगाओ अभी।

साथ मिलकर चलो जंग ये जीत लें,
मौत के खौफ़ को मिल हराओ अभी।

*मक्ता*
कश्मकश ज़िन्दगी साँस धड़कन रुकी
हौसला तुम *प्रियम* का बढ़ाओ अभी।

©पंकज प्रियम

क्रम ५ - मात्रा गणना का सामान्य नियम

मात्रा गणना का सामान्य नियम 

बा-बह्र ग़ज़ल लिखने के लिए तक्तीअ (मात्रा गणना) ही एक मात्र अचूक उपाय है, यदि शेर की तक्तीअ (मात्रा गणना) करनी आ गई तो देर सबेर बह्र में लिखना भी आ जाएगा क्योकि जब किसी शायर को पता हो कि मेरा लिखा शेर बेबह्र है तभी उसे सही करने का प्रयास करेगा और तब तक करेगा जब तक वह शेर बाबह्र न हो जाए
मात्राओं को गिनने का सही नियम न पता होने के कारण ग़ज़लकार अक्सर बह्र निकालने में या तक्तीअ करने में दिक्कत महसूस करते हैं आईये तक्तीअ प्रणाली को समझते हैं
ग़ज़ल में सबसे छोटी इकाई 'मात्रा' होती है और हम भी तक्तीअ प्रणाली को समझने के लिए सबसे पहले मात्रा से परिचित होंगे -

मात्रा दो प्रकार की होती है 
१- ‘एक मात्रिक’ इसे हम एक अक्षरीय व एक हर्फी व लघु व लाम भी कहते हैं और १ से अथवा हिन्दी कवि | से भी दर्शाते हैं   
२= ‘दो मात्रिक’ इसे हम दो अक्षरीय व दो हरूफी व दीर्घ व गाफ भी कहते हैं और २ अथवाS अथवा हिन्दी कवि S से भी दर्शाते हैं

एक मात्रिक स्वर अथवा व्यंजन के उच्चारण में जितना वक्त और बल लगता है दो मात्रिक के उच्चारण में उसका दोगुना वक्त और बल लगता है 

ग़ज़ल में मात्रा गणना का एक स्पष्ट, सरल और सीधा नियम है कि इसमें शब्दों को जैसा बोला जाता है (शुद्ध उच्चारण)  मात्रा भी उस हिसाब से ही गिनाते हैं 
जैसे - हिन्दी में कमल = क/म/ल = १११ होता है मगर ग़ज़ल विधा में इस तरह मात्रा गणना नहीं करते बल्कि उच्चारण के अनुसार गणना करते हैं | उच्चारण करते समय हम "क" उच्चारण के बाद "मल" बोलते हैं इसलिए ग़ज़ल में ‘कमल’ = १२ होता है यहाँ पर ध्यान देने की बात यह है कि “कमल” का ‘“मल’” शाश्वत दीर्घ है अर्थात जरूरत के अनुसार गज़ल में ‘कमल’ शब्द की मात्रा को १११ नहीं माना जा सकता यह हमेशा १२ ही रहेगा

‘उधर’- उच्च्चरण के अनुसार उधर बोलते समय पहले "उ" बोलते हैं फिर "धर" बोलने से पहले पल भर रुकते हैं और फिर 'धर' कहते हैं इसलिए इसकी मात्रा गिनाते समय भी ऐसे ही गिनेंगे 
अर्थात – उ+धर = उ १ धर २ = १२ 

मात्रा गणना करते समय ध्यान रखे कि -

क्रमांक १ - सभी व्यंजन (बिना स्वर के) एक मात्रिक होते हैं 
जैसे – क, ख, ग, घ, च, छ, ज, झ, ट ... आदि १ मात्रिक हैं 

क्रमांक २ - अ, इ, उ स्वर व अनुस्वर चन्द्रबिंदी तथा इनके साथ प्रयुक्त व्यंजन एक मात्रिक होते हैं
जैसे = अ, इ, उ, कि, सि, पु, सु हँ  आदि एक मात्रिक हैं 
क्रमांक ३ - आ, ई, ऊ ए ऐ ओ औ अं स्वर तथा इनके साथ प्रयुक्त व्यंजन दो मात्रिक होते हैं 
जैसे = आ, सो, पा, जू, सी, ने, पै, सौ, सं आदि २ मात्रिक हैं 

क्रमांक ४. (१) - यदि किसी शब्द में दो 'एक मात्रिक' व्यंजन हैं तो उच्चारण अनुसार दोनों जुड कर शाश्वत दो मात्रिक अर्थात दीर्घ बन जाते हैं जैसे ह१+म१ = हम = २  ऐसे दो मात्रिक शाश्वत दीर्घ होते हैं जिनको जरूरत के अनुसार ११ अथवा १ नहीं किया जा सकता है 
जैसे – सम, दम, चल, घर, पल, कल आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं

४. (२) परन्तु जिस शब्द के उच्चारण में दोनो अक्षर अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ दोनों लघु हमेशा अलग अलग अर्थात ११ गिना जायेगा 
जैसे –  असमय = अ/स/मय =  अ१ स१ मय२ = ११२      
असमय का उच्चारण करते समय 'अ' उच्चारण के बाद रुकते हैं और 'स' अलग अलग बोलते हैं और 'मय' का उच्चारण एक साथ करते हैं इसलिए 'अ' और 'स' को दीर्घ नहीं किया जा सकता है और मय मिल कर दीर्घ हो जा रहे हैं इसलिए असमय का वज्न अ१ स१ मय२ = ११२  होगा इसे २२ नहीं किया जा सकता है क्योकि यदि इसे २२ किया गया तो उच्चारण अस्मय हो जायेगा और शब्द उच्चारण दोषपूर्ण हो जायेगा|    
  
क्रमांक ५ (१) – जब क्रमांक २ अनुसार किसी लघु मात्रिक के पहले या बाद में कोई शुद्ध व्यंजन(१ मात्रिक क्रमांक १ के अनुसार) हो तो उच्चारण अनुसार दोनों लघु मिल कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है 

उदाहरण – “तुम” शब्द में “'त'” '“उ'” के साथ जुड कर '“तु'” होता है(क्रमांक २ अनुसार), “तु” एक मात्रिक है और “तुम” शब्द में “म” भी एक मात्रिक है (क्रमांक १ के अनुसार)  और बोलते समय “तु+म” को एक साथ बोलते हैं तो ये दोनों जुड कर शाश्वत दीर्घ बन जाते हैं इसे ११ नहीं गिना जा सकता 
इसके और उदाहरण देखें = यदि, कपि, कुछ, रुक आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं 
  
५ (१) परन्तु जहाँ किसी शब्द के उच्चारण में दोनो हर्फ़ अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ अलग अलग ही अर्थात ११ गिना जायेगा 
जैसे –  सुमधुर = सु/ म /धुर = स+उ१ म१ धुर२ = ११२    

क्रमांक ६ (१) - यदि किसी शब्द में अगल बगल के दोनो व्यंजन किन्हीं स्वर के साथ जुड कर लघु ही रहते हैं (क्रमांक २ अनुसार) तो उच्चारण अनुसार दोनों जुड कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है इसे ११ नहीं गिना जा सकता 
जैसे = पुरु = प+उ / र+उ = पुरु = २,    
इसके और उदाहरण देखें = गिरि
६ (२) परन्तु जहाँ किसी शब्द के उच्चारण में दो हर्फ़ अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ अलग अलग ही गिना जायेगा 
जैसे –  सुविचार = सु/ वि / चा / र = स+उ१ व+इ१ चा२ र१ = ११२१ 

क्रमांक ७ (१) - ग़ज़ल के मात्रा गणना में अर्ध व्यंजन को १ मात्रा माना गया है तथा यदि शब्द में उच्चारण अनुसार पहले अथवा बाद के व्यंजन के साथ जुड जाता है और जिससे जुड़ता है वो व्यंजन यदि १ मात्रिक है तो वह २ मात्रिक हो जाता है और यदि दो मात्रिक है तो जुडने के बाद भी २ मात्रिक ही रहता है ऐसे २ मात्रिक को ११ नहीं गिना जा सकता है 
उदाहरण - 
सच्चा = स१+च्१ / च१+आ१  = सच् २ चा २ = २२ 
(अतः सच्चा को ११२ नहीं गिना जा सकता है)
आनन्द = आ / न+न् / द = आ२ नन्२ द१ = २२१   
कार्य = का+र् / य = कार् २  य १ = २१  (कार्य में का पहले से दो मात्रिक है तथा आधा र के जुडने पर भी दो मात्रिक ही रहता है)
तुम्हारा = तु/ म्हा/ रा = तु१ म्हा२ रा२ = १२२ 
तुम्हें = तु / म्हें = तु१ म्हें२ = १२  
उन्हें = उ / न्हें = उ१ न्हें२ = १२ 

७ (२) अपवाद स्वरूप अर्ध व्यंजन के इस नियम में अर्ध स व्यंजन के साथ एक अपवाद यह है कि यदि अर्ध स के पहले या बाद में कोई एक मात्रिक अक्षर होता है तब तो यह उच्चारण के अनुसार बगल के शब्द के साथ जुड जाता है परन्तु यदि अर्ध स के दोनों ओर पहले से दीर्घ मात्रिक अक्षर होते हैं तो कुछ शब्दों में अर्ध स को स्वतंत्र एक मात्रिक भी माना लिया जाता है 
जैसे = रस्ता = र+स् / ता २२ होता है मगर रास्ता = रा/स्/ता = २१२ होता है 
दोस्त = दो+स् /त= २१ होता है मगर दोस्ती = दो/स्/ती = २१२ होता है 
इस प्रकार और शब्द देखें  
बस्ती, सस्ती, मस्ती, बस्ता, सस्ता = २२ 
दोस्तों = २१२ 
मस्ताना = २२२ 
मुस्कान = २२१        
संस्कार= २१२१     

क्रमांक ८. (१) - संयुक्ताक्षर जैसे = क्ष, त्र, ज्ञ द्ध द्व आदि दो व्यंजन के योग से बने होने के कारण दीर्घ मात्रिक हैं परन्तु मात्र गणना में खुद लघु हो कर अपने पहले के लघु व्यंजन को दीर्घ कर देते है अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी स्वयं लघु हो जाते हैं    
उदाहरण = पत्र= २१, वक्र = २१, यक्ष = २१, कक्ष - २१, यज्ञ = २१, शुद्ध =२१ क्रुद्ध =२१ 
गोत्र = २१, मूत्र = २१, 

८. (२) यदि संयुक्ताक्षर से शब्द प्रारंभ हो तो संयुक्ताक्षर लघु हो जाते हैं 
उदाहरण = त्रिशूल = १२१, क्रमांक = १२१, क्षितिज = १२  

८. (३) संयुक्ताक्षर जब दीर्घ स्वर युक्त होते हैं तो अपने पहले के व्यंजन को दीर्घ करते हुए स्वयं भी दीर्घ रहते हैं अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी दीर्घ स्वर युक्त संयुक्ताक्षर दीर्घ मात्रिक गिने जाते हैं  
उदाहरण = 
प्रज्ञा = २२  राजाज्ञा = २२२,  

८ (४) उच्चारण अनुसार मात्रा गणना के कारण कुछ शब्द इस नियम के अपवाद भी है - 
उदाहरण = अनुक्रमांक = अनु/क्र/मां/क = २१२१ ('नु' अक्षर लघु होते हुए भी 'क्र' के योग से दीर्घ नहीं हुआ और उच्चारण अनुसार अ के साथ जुड कर दीर्घ हो गया और क्र लघु हो गया)       

क्रमांक ९ - विसर्ग युक्त व्यंजन दीर्ध मात्रिक होते हैं ऐसे व्यंजन को १ मात्रिक नहीं गिना जा सकता 
उदाहरण = दुःख = २१ होता है इसे दीर्घ (२) नहीं गिन सकते यदि हमें २ मात्रा में इसका प्रयोग करना है तो इसके तद्भव रूप में 'दुख' लिखना चाहिए इस प्रकार यह दीर्घ मात्रिक हो जायेगा 
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मात्रा गणना के लिए अन्य शब्द देखें - 
तिरंगा = ति + रं + गा =  ति १ रं २ गा २ = १२२     
उधर = उ/धर उ१ धर२ = १२ 
ऊपर = ऊ/पर = ऊ २ पर २ = २२      

इस तरह अन्य शब्द की मात्राओं पर ध्यान दें = 
मारा = मा / रा  = मा २ रा २ = २२
मरा  = म / रा  = म १ रा २ = १२
मर = मर २ = २
सत्य = सत् / य = सत् २ य २ = २१
असत्य = अ / सत् / य  = अ१ सत्२ य१ =१२१
झूठ = झू / ठ = झू २  ठ१ = २१
सच = २
आमंत्रण = आ / मन् / त्रण = आ२ मन्२ त्रण२ = २२२
राधा = २२ = रा / धा = रा२ धा२ = २२ 
श्याम = २१
आपको = २१२
ग़ज़ल = १२
मंजिल = २२
नंग = २१
दोस्त =  २१
दोस्ती = २१२
राष्ट्रीय = २१२१
तुरंत = १२१
तुम्हें = १२
तुम्हारा = १२२
जुर्म = २१
हुस्न = २१
जिक्र = २१
फ़िक्र = २१
मित्र  = २१
सूक्ति = २१ 
साहित्य = २२१ 
साहित्यिक = २२२ 
मुहावरा = १२१२