वाक्य में प्रयुक्त अक्षरों की संख्या एवं क्रम, मात्रा-गणना तथा यति-गति से सम्बद्ध विशिष्ट नियमों से नियोजित पद्यरचना ‘'छन्द'’ कहलाती है। छन्दस् शब्द 'छद' धातु से बना है। इसका धातुगत व्युत्पत्तिमूलक अर्थ है - 'जो अपनी इच्छा से चलता है'। इसी मूल से स्वच्छंद जैसे शब्द आए हैं। अत: छंद शब्द के मूल में गति का भाव है।
किसी वाङमय की समग्र सामग्री का नाम साहित्य है। संसार में जितना साहित्य मिलता है ’ ऋग्वेद ’ उनमें प्राचीनतम है। ऋग्वेद की रचना छंदोबद्ध ही है। यह इस बात का प्रमाण है कि उस समय भी कला व विशेष कथन हेतु छंदो का प्रयोग होता था।छंद को पद्य रचना का मापदंड कहा जा सकता है। बिना कठिन साधना के कविता में छंद योजना को साकार नहीं किया जा सकता।
‘गण’ का विचार केवल वर्ण वृत्त में होता है मात्रिक छन्द इस बंधन से मुक्त होते हैं।
गणचिह्नउदाहरण CC's aप्रभावयगण (य)।ऽऽनहानाशुभमगण (मा)ऽऽऽआजादीशुभतगण (ता)ऽऽ।चालाकअशुभरगण (रा)ऽ।ऽपालनाअशुभजगण (ज)।ऽ।करीलअशुभभगण (भा)ऽ।।बादलशुभनगण (न)।।।कमलशुभसगण (स)।।ऽकमलाअशुभ
दोहा मात्रिक छंद है। यह अर्द्ध सम मात्रिक छंंद कहते हैं । दोहे में चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) चरण में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। सम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है। दोहे के मुख्य 23 प्रकार हैं:- 1.भ्रमर, 2.सुभ्रमर, 3.शरभ, 4.श्येन, 5.मण्डूक, 6.मर्कट, 7.करभ, 8.नर, 9.हंस, 10.गयंद, 11.पयोधर, 12.बल, 13.पान, 14.त्रिकल 15.कच्छप, 16.मच्छ, 17.शार्दूल, 18.अहिवर, 19.व्याल, 20.विडाल, 21.उदर, 22.श्वान, 23.सर्प। उदाहरण -
- रात-दिवस, पूनम-अमा, सुख-दुःख, छाया-धूप।
- यह जीवन बहुरूपिया, बदले कितने रूप॥
दोही दोहे का ही एक प्रकार है। इसके विषम चरणों में १५-१५ एवं सम चरणों में ११-११ मात्राऐं होती हैं।उदाहरण-
- प्रिय पतिया लिख-लिख थक चुकी,मिला न उत्तर कोय।
- सखि! सोचो अब में क्या करूँ,सूझे राह न कोय।।
रोला मात्रिक सम छंद होता है। इसके प्रत्येक चरण में २४ मात्राएँ होती हैं। उदाहरण -
- यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।
- पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥
सोरठा अर्ध्दसम मात्रिक छंद है और यह दोहा का ठीक उलटा होता है। इसके विषम चरणों चरण में 11-11 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्राका होना आवश्यक होता है। उदाहरण -
- जो सुमिरत सिधि होय, गननायक करिबर बदन।
- करहु अनुग्रह सोय, बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥
चौपाई मात्रिक सम छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं। सिंह विलोकित, पद्धरि, श्रंगार, अरिल्ल,अड़िल्ल, पादाकुलक आदि छंद चौपाई के समान लक्षण वाले छंद हैं।उदाहरण -
- बंदउँ गुरु पद पदुम परागा।
- सुरुचि सुबास सरस अनुराग॥
- अमिय मूरिमय चूरन चारू।
- समन सकल भव रुज परिवारू॥
कुण्डलिया विषम मात्रिक छंद है। इसमें छः चरण होते हैं अौर प्रत्येक चरण में २४ मात्राएँ होती हैं। दोहों के बीच एक रोलामिला कर कुण्डलिया बनती है। पहले दोहे का अंतिम चरणही रोले का प्रथम चरण होता है तथा जिस शब्द सेकुण्डलिया का आरम्भ होता है, उसी शब्द से कुण्डलियासमाप्त भी होता है। उदाहरण -
- कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम।
- खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥
- उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
- बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै॥
- कह गिरिधर कविराय, मिलत है थोरे दमरी।
- सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥
गीतिका (छंद) मात्रिक सम छंद है जिसमें २६ मात्राएँ होती हैं। १४ और १२ पर यति तथा अंत में लघु -गुरु आवश्यक है। इस छंद की तीसरी, दसवीं, सत्रहवीं और चौबीसवीं अथवा दोनों चरणों के तीसरी-दसवीं मात्राएँ लघु हों तथा अंत में रगण हो तो छंद निर्दोष व मधुर होता है। उदाहरण-
- खोजते हैं साँवरे को,हर गली हर गाँव में।
- आ मिलो अब श्याम प्यारे,आमली की छाँव में।।
- आपकी मन मोहनी छवि,बाँसुरी की तान जो।
- गोप ग्वालों के शरीरोंं,में बसी ज्यों जान वो।।
हरिगीतिका चार चरणों वाला एक सम मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 16 व 12 के विराम से 28 मात्रायें होती हैं तथा अंत में लघु गुरु आना अनिवार्य है। हरिगीतिका में 16 और 12 मात्राओं पर यति होती है। प्रत्येक चरण के अन्त में रगण आना आवश्यक है। उदाहरण-
- प्रभु गोद जिसकी वह यशोमति,दे रहे हरि मान हैं ।
- गोपाल बैठे आधुनिक रथ,पर सहित सम्मान हैं ॥
- मुरली अधर धर श्याम सुन्दर,जब लगाते तान हैं ।
- सुनकर मधुर धुन भावना में,बह रहे रसखान हैं॥
बरवै अर्ध सम मात्रिक छंद है। इसमें प्रथम एवं तृतीय चरण में १२ -१२ मात्राएँ तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में ७-७ मात्राएँ होती हैं। सम चरणों के अंत में जगण होता है।उदाहरण-
- चम्पक हरवा अंग मिलि,अधिक सुहाय।
- जानि परै सिय हियरे,जब कुंभिलाय।।
छप्पय मात्रिक विषम छन्द है। यह संयुक्त छन्द है, जो रोला (11+13) चार पद तथा उल्लाला (15+13) के दो पद के योग से बनता है।उदाहरण-
- डिगति उर्वि अति गुर्वि, सर्व पब्बे समुद्रसर।
- ब्याल बधिर तेहि काल, बिकल दिगपाल चराचर।
- दिग्गयन्द लरखरत, परत दसकण्ठ मुक्खभर।
- सुर बिमान हिम भानु, भानु संघटित परस्पर।
- चौंकि बिरंचि शंकर सहित,कोल कमठ अहि कलमल्यौ।
- ब्रह्मण्ड खण्ड कियो चण्ड धुनि, जबहिं राम शिव धनु दल्यौ।।
उल्लाला सम मात्रिक छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में 13-13 मात्राओं के हिसाब से 26 मात्रायें तथा 15-13 के हिसाब से 28 मात्रायें होती हैं। इस तरह उल्लाला के दो भेद होते है। तथापि 13 मात्राओं वाले छन्द में लघु-गुरु का कोई विशेष नियम नहीं है लेकिन 11वीं मात्रा लघु ही होती है।15 मात्राओं वाले उल्लाला छन्द में 13 वीं मात्रा लघु होती है। 13 मात्राओं वाला उल्लाला बिल्कुल दोहे की तरह होता है,बस दूसरे चरण में केवल दो मात्रायें बढ़ जाती हैं। प्रथम चरण में लघु-दीर्घ से विशेष फर्क नहीं पड़ता। उल्लाला छन्द को चन्द्रमणि भी कहा जाता है।उदाहरण-
- यों किधर जा रहे हैं बिखर,कुछ बनता इससे कहीं।
- संगठित ऐटमी रूप धर,शक्ति पूर्ण जीतो मही ॥
सवैया चार चरणों का समपद वर्णछंद है। वर्णिक वृत्तों में 22 से 26 अक्षर के चरण वाले जाति छन्दों को सामूहिक रूप से हिन्दी में सवैया कहा जाता है।सवैये के मुख्य १४ प्रकार हैं:- १. मदिरा, २. मत्तगयन्द, ३. सुमुखी, ४. दुर्मिल, ५. किरीट, ६. गंगोदक, ७. मुक्तहरा, ८. वाम, ९. अरसात, १०. सुन्दरी, ११. अरविन्द, १२. मानिनी, १३. महाभुजंगप्रयात, १४. सुखी। उदाहरण-
- मानुस हौं तो वही रसखान,बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
- जो पसु हौं तो कहा बस मेरो,चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥
- पाहन हौं तो वही गिरि को,जो धर्यो कर छत्र पुरंदर कारन।
- जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कूल कदम्ब की डारन॥
- सेस गनेस महेस दिनेस,सुरेसहु जाहि निरंतर गावैं।
- जाहि अनादि अनंत अखण्ड,अछेद अभेद सुभेद बतावैं॥
- नारद से सुक व्यास रहे,पचिहारे तौं पुनि पार न पावैं।
- ताहि अहीर की छोहरियाँ,छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥
- कानन दै अँगुरी रहिहौं,जबही मुरली धुनि मंद बजैहैं।
- माहिनि तानन सों रसखान,अटा चढ़ि गोधन गैहैं पै गैहैं॥
- टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि,काल्हि कोई कितनो समझैहैं।
- माई री वा मुख की मुसकान,सम्हारि न जैहैं,न जैहैं,न जैहैं॥
कवित्त या घनाक्षरी एक वार्णिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में १६, १५ के विराम से ३१ वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण के अन्त में गुरू वर्ण होना चाहिये। छन्द की गति को ठीक रखने के लिये ८, ८, ८ और ७ वर्णों पर यति रहना चाहिये।उदाहरण-
- नाव अरि लाब नहि,उतरक दाब नहि,
- एक बुद्धि आब नहि,सागर अपार में।
- वीर अरि छोट नहि, संग एक गोट नहि,
- लंका लघु कोट नहि, विदित संसार में।।
मधुमालती छंद में प्रत्येक चरण में 14 मात्राएँ होती हैं, अंत में 212 वाचिक भार होता है, 5-12 वीं मात्रा पर लघु अनिवार्य होता है।उदाहरण -
- होंगे सफल,धीरज धरो ,
- कुछ हम करें,कुछ तुम करो ।
- संताप में , अब मत जलो ,
- कुछ हम चलें , कुछ तुम चलो ।।
विजात छंद के प्रत्येक चरण में 14 मात्राएँ होती हैं, अंत में 222 वाचिक भार होता है, 1,8 वीं मात्रा पर लघु अनिवार्य होता है। उदाहरण -
- तुम्हारे नाम की माला,
- तुम्हारे नाम की हाला ।
- हुआ जीवन तुम्हारा है,
- तुम्हारा ही सहारा है ।।
मनोरम छंद के प्रत्येक चरण में 14 मात्राएँ होती हैं ,आदि में 2 और अंत में 211 या 122 होता है ,3-10 वीं मात्रा पर लघु 1 अनिवार्य है।उदाहरण-
- उलझनें पूजालयों में ,
- शांति है शौचालयों में।
- शान्ति के इस धाम आयें,
- उलझनों से मुक्ति पायें।।
शक्ति छंद में 18 मात्राओं के चार चरण होते हैं, अंत में वाचिक भार 12 होता है तथा 1,6,11,16 वीं मात्रा पर लघु 1 अनिवार्य होता है। उदाहरण -
- चलाचल चलाचल अकेले निडर,
- चलेंगे हजारों, चलेगा जिधर।
- दया-प्रेम की ज्योति उर में जला,
- टलेगी स्वयं पंथ की हर बेला ।।
पीयूष वर्ष छंद में 10+9=19 मात्राओं के चार चरण होते हैं,अंत में 12 होता है तथा 3,10,17 वीं मात्रा पर लघु 1 अनिवार्य है। यदि यति अनिवार्य न हो और अंत में 2 = 11 की छूट हो तो यही छंद 'आनंदवर्धक' कहलाता है।उदाहरण-
- लोग कैसे , गन्दगी फैला रहे ,
- नालियों में छोड़ जो मैला रहे।
- नालियों पर शौच जिनके शिशु करें,
- रोग से मारें सभी को खुद मरें।।
विधान - इसके प्रत्येक चरण में 12+7=19 अथवा 10+9=19 मात्राएँ होती हैं ; 12,7 अथवा 10,9 पर यति होतो है ; इसके आदि में लघु 1 आता है जबकि अंत में 221,212,121,222 वर्जित हैं तथा 1,8,15 वीं मात्रा लघु 1 होती है।उदाहरण-
- लहै रवि लोक सोभा , यह सुमेरु ,
- कहूँ अवतार पर , ग्रह केर फेरू।
- सदा जम फंद सों , रही हौं अभीता ,
- भजौ जो मीत हिय सों , राम सीता।।
सगुण छंद के प्रयेक चरण में 19 मात्राएँ होती हैं , आदि में 1 और अंत में 121 होता है,1,6,11, 16,19 वी मात्रा लघु 1 होती है।उदाहरण -
- सगुण पञ्च चारौ जुगन वन्दनीय ,
- अहो मीत, प्यारे भजौ मातु सीय।
- लहौ आदि माता चरण जो ललाम ,
- सुखी हो मिलै अंत में राम धाम।।
शास्त्र छंद के प्रत्येक चरण में 20 मात्राएँ होती हैं ; अंत में 21 होता है तथा 1,8,15,20 वीं मात्राएँ लघु होती हैं।उदाहरण -
- मुनीके लोक लहिये शास्त्र आनंद ,
- सदा चित लाय भजिये नन्द के नन्द।
- सुलभ है मार प्यारे ना लगै दाम ,
- कहौ नित कृष्ण राधा और बलराम।।
सिन्धु छंद के प्रत्येक चरण में 21 मात्राएँ होती है और 1,8,15 वीं मात्रा लघु 1 होती है।उदाहरण -
- लखौ त्रय लोक महिमा सिन्धु की भारी ,
- तऊ पुनि गर्व के कारण भयो खारी।
- लहे प्रभुता सदा जो शील को धारै ,
- दया हरि सों तरै कुल आपनो तारै।।
विधान - इसके प्रत्येक चरण में 14+8=22 मात्राएँ होती हैं , 14,8 मात्रा पर यति होती है तथा 5,6,11,12,17,18 वीं मात्रा लघु 1 होती है l
मापनी - 221 1221 1221 122 गागाल लगागाल लगागाल लगागा मफ़ऊलु मुफाईलु मुफाईलु फ़ऊलुन
उदाहरण - लाचार बड़ा आज पड़ा हाथ बढ़ाओ , हे श्याम फँसी नाव इसे पार लगाओ l कोई न पिता मात सखा बन्धु न वामा , हे श्याम दयाधाम खड़ा द्वार सुदामा l
(11) छंद - दिगपाल / मृदुगति विधान - इस छंद के प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं ; 12,24 मात्रा पर यति होती है , आदि में समकल होता है और 5,8,17,20 वीं मात्रा अविवार्यतः लघु 1 होती है l
मापनी - 221 2122 221 2122 गागाल गालगागा गागाल गालगागा मफ़ऊलु फाइलातुन मफ़ऊलु फाइलातुन
उदाहरण सविता विराज दोई , दिक्पाल छन्द सोई l सो बुद्धि मंत प्राणी, जो राम शरण होई ll रे मान बात मेरी, मायाहि त्यागि दीजै l सब काम छाँड़ि मीता, इक राम नाम लीजै ll
(12) छंद - सारस विधान - इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं , 12,12 मात्रा पर यति होती है ; आदि में विषम कल होता है और 3,4,9,10,15,16,21,22 वीं मात्राएँ अनिवार्यतः लघु 1 होती हैं l
मापनी - 2112 2112 2112 2112 गाललगा गाललगा गाललगा गाललगा फ़ाइलतुन फ़ाइलतुन फ़ाइलतुन फ़ाइलतुन (अथवा) मुफ़्तअलन मुफ़्तअलन मुफ़्तअलन मुफ़्तअलन
उदाहरण भानु कला राशि कला, गादि भला सारस है l राम भजत ताप भजत, शांत लहत मानस है ll शोक हरण पद्म चरण, होय शरण भक्ति सजौ l राम भजौ रान भजौ, राम भजौ राम भजौ ll