Tuesday, June 19, 2018

अंगूठा

लघुकथा
अंगूठा

आज बुधिया के घर बड़े बड़े अफसरों की भीड़ लगी थी। नेताओं का जमावड़ा था। कोई एक बोरी चावल लेकर आया था तो कोई गेंहू भर टोकरी।कोई उसे दो हजार के नोट दे रहा था। वह एकटक चुपचाप सबको देखे जा रही थी। उसकी बेटी सुलमी कल भात भात कहते मर गयी। घर में एक दाना अनाज नहीं था। एक सप्ताह से राशन दुकान का चक्कर लगाकर थक चुका था। मशीन उसका अंगूठा नहीं पढ़ पा रही थी। वह डीलर बाबू की मिन्नतें करता कि एक किलो ही अनाज दे दो लेकिन वह झिड़क कर भगा देता।
सुबह जैसे ही सुलमी के मौत की खबर लगी उसके घर अनाज और पैसों की बरसात हो रही है। डॉक्टर साहब ने जांच पड़ताल कर कह दिया कि सुलमी की मौत भूख से नहीं बीमारी के कारण हुई हैं। बड़े बाबुओं ने कागज पर ठेपा भी लगवा लिया। जो अंगूठा मशीन नहीं पढ़ पा रही थी वो बाबुओं के काम आ गयी। बुधिया कभी अनाजों के ढेर को देखता कभी सुलमी की लाश को और कभी आने अंगूठे को।
©पंकज प्रियम
19.6.2018