Thursday, October 25, 2018

दोहा

दोहा लेखन विधान:

१. दोहा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व है कथ्य। कथ्य से समझौता न करें। कथ्य या विषय को सर्वोत्तम रूप में प्रस्तुत करने के लिए विधा (गद्य-पद्य, छंद आदि) का चयन किया जाता है। कथ्य को 'लय' में प्रस्तुत किया जाने पर 'लय'के अनुसार छंद-निर्धारण होता है। छंद-लेखन हेतु विधान से सहायता मिलती है। रस तथा अलंकार लालित्यवर्धन हेतु है। उनका पालन किया जाना चाहिए किंतु कथ्य की कीमत पर नहीं। दोहाकार कथ्य, लय और विधान तीनों को साधने पर ही सफल होता है।
२. दोहा द्विपदिक छंद है। दोहा में दो पंक्तियाँ (पद) होती हैं। हर पद में दो चरण होते हैं।
३. दोहा मुक्तक छंद है। कथ्य (जो बात कहना चाहें वह) एक दोहे में पूर्ण हो जाना चाहिए। सामान्यत: प्रथम चरण में उद्भव, द्वितीय-तृतीय चरण में विस्तार तथा चतुर्थ चरण में उत्कर्ष या समाहार होता है।
४. विषम (पहला, तीसरा) चरण में १३-१३ तथा सम (दूसरा, चौथा) चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं।
५. तेरह मात्रिक पहले तथा तीसरे चरण के आरंभ में एक शब्द में जगण (लघु गुरु लघु) वर्जित होता है। पदारंभ में 'इसीलिए' वर्जित, 'इसी लिए' मान्य।
६. विषम चरणांत में 'सरन' तथा सम चरणांत में 'जात' से लय साधना सरल होता है है किंतु अन्य गण-संयोग वर्जित नहीं हैं।
७. विषम कला से आरंभ दोहे के विषम चरण मेंकल-बाँट ३ ३ २ ३ २ तथा सम कला से आरंभ दोहे के विषम चरण में में कल बाँट ४ ४ ३ २ तथा सम चरणों की कल-बाँट ४ ४.३ या ३३ ३ २ ३ होने पर लय सहजता से सध सकती है।
८. हिंदी दोहाकार हिंदी के व्याकरण तथा मात्रा गणना नियमों का पालन करें। दोहा में वर्णिक छंद की तरह लघु को गुरु या गुरु को लघु पढ़ने की छूट नहीं होती।
९. आधुनिक हिंदी / खड़ी बोली में खाय, मुस्काय, आत, भात, आब, जाब, डारि, मुस्कानि, हओ, भओ जैसे देशज / आंचलिक शब्द-रूपों का उपयोग न करें। बोलियों में दोहा रचना करते समय उस बोली का यथासंभव शुद्ध रूप व्यवहार में लाएँ।
१०. श्रेष्ठ दोहे में अर्थवत्ता, लाक्षणिकता, संक्षिप्तता, मार्मिकता (मर्मबेधकता), आलंकारिकता, स्पष्टता, पूर्णता, सरलता तथा सरसता होना चाहिए।
११. दोहे में संयोजक शब्दों और, तथा, एवं आदि का प्रयोग यथासंभव न करें। औ' वर्जित 'अरु' स्वीकार्य। 'न' सही, 'ना' गलत। 'इक' गलत।
१२. दोहे में यथासंभव अनावश्यक शब्द का प्रयोग न हो। शब्द-चयन ऐसा हो जिसके निकालने या बदलने पर दोहा अधूरा सा लगे।
१३. दोहा में विराम चिन्हों का प्रयोग यथास्थान अवश्य करें।
१४. दोहे में कारक (ने, को, से, के लिए, का, के, की, में, पर आदि) का प्रयोग कम से कम हो।
१५. दोहा सम तुकांती छंद है। सम चरण के अंत में सामान्यत: वार्णिक समान तुक आवश्यक है। संगीत की बंदिशों, श्लोकों आदि में मात्रिक समान्त्तता भी राखी जाती रही है।
१६. दोहा में लय का महत्वपूर्ण स्थान है। लय के बिना दोहा नहीं कहा जा सकता। लयभिन्नता स्वीकार्य है लयभंगता नहीं
*
मात्रा गणना नियम
१. किसी ध्वनि-खंड को बोलने में लगनेवाले समय के आधार पर मात्रा गिनी जाती है।
२. कम समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की एक तथा अधिक समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की दो मात्राएँ गिनी जाती हैंं। तीन मात्रा के शब्द ॐ, ग्वं आदि संस्कृत में हैं, हिंदी में नहीं।
३. अ, इ, उ, ऋ तथा इन मात्राओं से युक्त वर्ण की एक मात्रा गिनें। उदाहरण- अब = ११ = २, इस = ११ = २, उधर = १११ = ३, ऋषि = ११= २, उऋण १११ = ३ आदि।
४. शेष वर्णों की दो-दो मात्रा गिनें। जैसे- आम = २१ = ३, काकी = २२ = ४, फूले २२ = ४, कैकेई = २२२ = ६, कोकिला २१२ = ५, और २१ = ३आदि।
५. शब्द के आरंभ में आधा या संयुक्त अक्षर हो तो उसका कोई प्रभाव नहीं होगा। जैसे गृह = ११ = २, प्रिया = १२ =३ आदि।
६. शब्द के मध्य में आधा अक्षर हो तो उसे पहले के अक्षर के साथ गिनें। जैसे- क्षमा १+२, वक्ष २+१, विप्र २+१, उक्त २+१, प्रयुक्त = १२१ = ४ आदि।
७. रेफ को आधे अक्षर की तरह गिनें। बर्रैया २+२+२आदि।
८. अपवाद स्वरूप कुछ शब्दों के मध्य में आनेवाला आधा अक्षर बादवाले अक्षर के साथ गिना जाता है। जैसे- कन्हैया = क+न्है+या = १२२ = ५आदि।
९. अनुस्वर (आधे म या आधे न के उच्चारण वाले शब्द) के पहले लघु वर्ण हो तो गुरु हो जाता है, पहले गुरु होता तो कोई अंतर नहीं होता। यथा- अंश = अन्श = अं+श = २१ = ३. कुंभ = कुम्भ = २१ = ३, झंडा = झन्डा = झण्डा = २२ = ४आदि।
१०. अनुनासिक (चंद्र बिंदी) से मात्रा में कोई अंतर नहीं होता। धँस = ११ = २आदि। हँस = ११ =२, हंस = २१ = ३ आदि।
मात्रा गणना करते समय शब्द का उच्चारण करने से लघु-गुरु निर्धारण में सुविधा होती है।

ॐ दोहा विधान :
आदरणीय महागुरू श्री संजीव सलिल जी
विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर से साभार प्राप्त :

Sunday, October 21, 2018

पीरियड्स बनाम सबरीमाला

सबरीमाला मन्दिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर हंगामा बरपा हुआ है। स्थिति ये है कि आंदोलन की सूत्रधार रेहाना फ़ातिमा ने मंदिर में अपनी इस्तेमाल की हुई सेनिटरी पैड भगवान अयप्पा को चढ़ाने का प्रयास कर रही थी। मन्दिर में महिलाओं को प्रवेश दिलाने के आंदोलन की वजाय महिलाओं की स्वच्छता और स्वास्थ्य पर ध्यान देने की जरूरत है। इसके लिए सभी को आगे बढ़कर काम करना चाहिए। स्वच्छता तो जीवन का अंग है उसे अपनाने से कौन रोक सकता है। जो लोग मन्दिर में प्रवेश को लेकर आंदोलन कर रहे हैं उन्हें इन मुद्दों पर लड़ाई लड़नी चाहिए। महिलाओं को स्वच्छता के प्रति जागरूक करना चाहिए। एक मंदिर में प्रवेश मिल जाने से क्या स्वच्छता आ जायगी? आज भी किसी दुकान में सेनिटरी पैड ख़रीदने जाओ तो काली प्लास्टिक और अखबार में ऐसे छिपाकर देते हैं जैसे बम खरीद रहे हों।जागरूकता पर वहां बल देने की जरूरत है। आज भी गांव की औरतें कपड़े का इस्तेमाल करती है उन्हें जागरूक करने की जरूरत है। इस विषय पर कोई खुलकर बात करना नहीं चाहता। मैंने इस मुद्दे पर कई स्कूलों में प्रशिक्षण दिया है लेकिन पढ़ी लिखी शिक्षिकाएं भी खुलकर बात करने से हिचकती है। जबतक लोग जागरूक नहीं होंगे सरकार की सारी कोशिशें बेकार होंगी। लोग बेवजह मन्दिर मस्जिद के मसले पर बवाल करते रहेंगे। असली मुद्दों पर किसी का ध्यान ही नहीं। महिला तब सशक्त होंगी जब हम उन्हें अपने घरों में ही सशक्त करेंगे। उन्हें उनका अधिकार देंगे।
पंकज प्रियम

Saturday, October 20, 2018

सबरीमाला आंदोलन


दक्षिण में सबरीमाला मन्दिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर उठा आंदोलन थमने का नाम नहीं ले रहा है। लोग इसे महिलाओं के अस्तित्व पर सवाल उठा रहे हैं। आंदोलनकारी रजस्वला औरतों को मन्दिर में प्रवेश पर रोक का विरोध कर रहे हैं।
बात यहाँ अस्तित्व की नहीं है।स्वच्छता और सुचिता की है। नवरात्र में भी कन्यापूजन का विधान है कन्या यानी जो अबतक रजस्वला नहीं हुई हो। जिन लड़कियों की माहवारी शुरू हो जाती उन्हें कन्यापूजन में नहीं बिठाया जाता। जहां तक सबरीमाला का सवाल है तो ये उसकी आस्था का प्रश्न है। स्वामी अयप्पा अगर ब्रह्मचारी हैं तो महिलाओं के वहां प्रवेश की आवश्यकता ही नहीं। जैसे हनुमान जी को महिलाएं स्पर्श कर पूजा नहीं करती। शालिग्राम को भी महिलाएं नहीं छूती। अपने अपने धर्म और पन्थो की अपनी मर्यादा है। जैसे मुस्लिम महिलाओं का मस्जिद में प्रवेश वर्जित है वहां तो कोई विरोध नहीं होता। बात चाहे तीन तलाक की हो या फतवे जारी करने की सुप्रीम कोर्ट भी मुस्लिम कानूनी मामलों में हस्तक्षेप करने से मना कर देती है। कहती है कि यह उनके धर्म का मसला है तो फिर सबरीमाला को लेकर इतना विवाद क्यों?हां तो यहां तो कामख्या मन्दिर में योनि की पूजा होती है और रजस्वला के दिनों निकले रक्तनुमा स्राव को लोग कपड़ों में पोंछ कर बड़ी श्रद्धा के साथ अपने पास रखतें हैं। आषाढ़ माह में धरती के रजस्वला होने पर तीन दिन तक हल नहीं चलाया जाता ताकि धरती माता को तकलीफ न हो। बात यहां सुचिता और शारीरिक स्वच्छता व स्वास्थ्य की भी है।अमूमन हर औरत खुद माहवारी में पूजा पाठ छोड़ देती है क्योंकि उन्हें खुद स्वच्छ महसूस नहीं होता। दिल से कोई भी औरत कह दे कि माहवारी के दौरान पूजा पाठ करना चाहती हैं? पूजा पाठ के लिए तनमन दोनों का स्वच्छ होना आवश्यक होता है।कोई भी औरत उन दिनों खुद को स्वस्थ और स्वच्छ नही  महसूस करती। और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखें तो माहवारी के दिनों में महिलाओं को सबसे अधिक आराम की जरूरत होती है और उन्हें संक्रमण का खतरा अधिक होता है। यही नहीं उस दौरान सहवास भी प्रतिबंधित होता क्योंकि बीमारियों का खतरा होता हस। । इसलिए प्राचीन काल में उन्हें सभी घरेलू कार्यों से मुक्त रखा गया ताकि वो आराम कर सकें। आखिर इसी दौरान मन्दिर में प्रवेश का हठ क्यूँ?उसके बाद तो कोई रोक नहीं है।

पंकज प्रियम

Saturday, October 13, 2018

छंद

छंदों के नाम ( मात्रा सहित )-*

*1.छवि छंद-8 मात्रिक*
22121

*2.गंग छन्द -9 मात्रिक*
22122

*3.शशिवदना छन्द-10 मात्रिक*
4 4 2

*4.रेवा छन्द -11 मात्रिक*
222221

*5.तोमर छंद -12 मात्रिक*
चरणांत - गुरु लघु

*6.उल्लाला छंद-13 मात्रिक*
चरणांत -लघु गुरु का कोई बन्धन नहीं

*7.सखी छंद-14 मात्रिक*
चरणांत यगण या मगण

*8.चौपइ छंद-15 मात्रिक*
चरणांत गुरु लघु
*----------------------*
👆🏽
*अभ्यासियों के अवलोकनार्थ*

Thursday, October 11, 2018

मैं आऊंगा माँ-एक शहीद का पत्र

मेरी प्यारी माँ
सादर चरण स्पर्श!

आज तक मैं हर जंग तुम्हारे ही प्यार और आशीर्वाद से जीत सका हूँ। हर मौके पर तुमने मेरा हौसला बढ़ाया है और मुस्कुरा कर मुझे विदा किया। उन मुस्कुराहटों में तुम्हारा दर्द मैंने हरबार देखा लेकिन तुमने जाहिर होने नहीं दिया। कहीं मैं कमजोर न पड़ जाऊं।
माँ आज मैंने बहुत वीरता के साथ लड़ाई लड़ी। दर्जन भर दुश्मनों को ढेर किया है तुम्हारे लाल ने। अब थक गया हूँ माँ... धरती मैया की गोद में तुम्हारे ही असीम प्यार की अनुभूति हो रही है। फिर से एक लोरी सुनाओ न माँ ताकि गहरी नींद आ जाये मुझे। मैं आऊंगा माँ... तुमसे वादा किया था....तिरंगे में सजा...जवानों के कांधे पर सवार होकर...राष्ट्रगान बजाते बैंडबाजा के साथ...मैं आ रहा हूँ...माँ..तू रोयेगी तो नहीं न माँ.....अपनी गोद में सुलाकर हंसते हुए लोरी सुनाना माँ... आँसू नहीं बहाना माँ.... नहीं तो कैसे जा पाऊंगा एक नई जंग के लिए।
तुम मेरी शादी को लेकर जिद कर रही थी न माँ.. देखो ...कितनी सुंदर सजधज कर मेरी दुल्हन खड़ी है...साथ ले जाने को...हाँ ! माँ ,मौत है नाम उसका जो मेरी दुल्हन बनी है। बहुत ध्यान रखेगी माँ. । बाबा से कहना कि ओ भी नहीं रोएं ..मुझे पता है जब भी मैं घर से निकला वो चुपचाप सिसकते रहे। उनकी खामोशी में सिसकियां सुनी है माँ। कहना कि उनका लाल  अमर हो गया। बचपन की तरह फिर मुझे कांधे पर उठाकर लेकर जाएं। उनके कांधे पर चढ़कर मैं फिर बच्चा बन जाऊंगा माँ..
अच्छा माँ ...आ ...रहा हूँ  ..तेरी गोदी में सोने को माँ

तुम्हारा अजय

©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखण्ड